पुष्पम प्रिया ये बिहार की राजनीतिक का वो नाम है, जिसे एक साल पहले तक कोई नहीं जानता था. लेकिन, खुद को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बताकर राष्ट्रीय मीडिया में विज्ञापन दे रातोंरात सुर्खियों में आ गईं. विदेश से पढ़ाई कर आई पुष्पम प्रिया ने प्लूरल्स पार्टी बनाकर राजनीति में एक नया सोशल इंजीनियरिंग का प्रयोग किया. उन्होंने चुनाव में डॉक्टर, इंजीनियर, शिक्षक और अन्य सामाजिक पेशे से जुड़े लोगों को राजानीति से जोड़कर उन्हें अपना उम्मीदवार बनाया.


पुष्पम प्रिया खुद दो विधानसभा सीट बिस्फी और बांकीपुर से चुनावी मैदान में उतरीं. लेकिन, उनका यह सोशल इंजीनियरिंग धरा का धरा रह गया. पुष्पम प्रिया के वादों और दावों का बिहार के वोटरों पर कोई असर नहीं है. नतीजा ये हुआ कि खुद को मुख्यमंत्री का चेहरा बताकर चुनाव में उतरीं पुष्पम प्रिया की दोनों सीटों पर जमानत जब्त हो गई. उन्हें बांकीपुर में एक फीसदी वोट भी नहीं मिल पाया.


पुष्पम प्रिया की दोनों सीटों पर जमानत जब्त


बिस्फी सीट पर उनका मुकाबला राजद के फैयाज अहमद था। अहमद ने 2015 में यहां रालोसपा के मनोज कुमार यादव को 35325 वोट से हराया. वहीं, बांकीपुर में उनके सामने बीजेपी के नितिन नवीन और कांग्रेस के लव सिन्हा थे.


ऐसे में पुष्पम प्रिया की आज हालत करीब वैसी ही हो गई जैसे कभी आनंद मोहन की हुई थी. आनंद मोहन एक महान स्वतंत्रता सेनानी रामबहादुर के परिवार से आते हैं. हालांकि, उनका नाम बाहुबलियों में शुमार किया जाता है और वे इस वक्त जेल में उम्रकैद की सजा काट रहे हैं. आनंद मोहन का नाम भी एक वक्त राजनीति में खूब सुर्खियों में रहा.


लालू के सामने सीएम उम्मीदवार के तौर पर उभरे थे आनंद मोहन?


साल 1995 में एक वक्त ऐसा आया  जब युवाओं के बीच आनंद मोहन का नाम लालू यादव के सामने मुख्यमंत्री के तौर पर भी उभरने लगा था. इसी साल उनकी बिहार पीपुल्स पार्टी ने नीतीश कुमार की समता पार्टी से बेहतर प्रदर्शन किया था. लेकिन खुद तीन सीटों से खड़े हुए आनंद मोहन हार गए थे.