लोकसभा चुनाव 2019 के दौरान बीजेपी और जेडीयू के बीच जब बराबर सीटों पर चुनाव लड़ने के लेकर सहमति बनी थी तो पार्टी के अंदर से इसके खिलाफ आवाज उठी थी. उस समय ऐसा महसूस किया गया था बीजेपी गठबंधन में स्वभाविक तौर पर सीनियर साझीदार है. इस चुनाव में एनडीए को 40 में से 39 सीटों पर जीत मिली थी. बीजेपी-17, जेडीयू 17 में से 16 और लोक जनशक्ति पार्टी सभी 6 सीटों पर जीत गई थी.


प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पक्ष में लोकसभा चुनाव परिणाम आने के बाद बीजेपी के अंदर राज्य ईकाई की तरफ से पार्टी से यह कहा गया कि वे एकला चलो का रास्ता अपनाएंलेकिन, शीर्ष पार्टी नेतृत्व ने यह साफ कर दिया कि वे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ अपनी साझेदारी को आगे भी कायम रखना चाहते है. इस फैसले के बाद चुनाव में बीजेपी को लेकर सभी कयासबाजी बंद हो गईलेकिन, इसके पीछे ये तीन वजहें है-


पहला- 2015 का बीजेपी का अनुभव. बिहार में बीजेपी, जेडीयू और आरजेडी की त्रिकोणीय राजनीति है। जहां भी ये दो पार्टियां एक साथ आती है उनकी सरकार बनती है. यही वजह ही कि बीजेपी पिछला चुनाव नहीं दोहराना का ऐसा कोई जोखिम नहीं उठाना चाहती थी.


दूसरा- बिहार के जटिल सामाजिक संरचनाओं को देखते हुए बीजेपी के नेताओं ने यह महसूस किया कि नीतीश कुमार के पास अभी भी अति पिछड़ों का समर्थन हासिल है, जिस पर बीजेपी ने भी पैठ बनाई है और वह उस खोने नहीं देना चाहती है.


तीसरा- अंत में पीएम मोदी का अतीत में मतभेद के बावजूद नीतीश कुमार के साथ काम करने का अच्छा रिश्ता रहा है.


दूसरी तरफ, बीजेपी राज्य में अपने दायरे को बढ़ाने के लिए आक्रामक तरीके से प्रचार किया क्योंकि वह सिर्फ अपनी उपस्थिति भर ही दर्ज नहीं कराना चाहती थी बल्कि बिहार की राजनीतिक में मुख्य स्तंभ के तौर पर उभरना चाहती थी, जहां पर उसका अभी तक एक भी मुख्यमंत्री नहीं बना है.


बीजेपी शुरुआत से ही जमीनी फीडबैक लेकर सीएम के खिलाफ सत्ता विरोध लहर को भांप गई थी. ऐसे में जब बीजेपी ने पहले ही यह ऐलान कर दिया था कि वे नीतीश को मुख्यमंत्री के तौर पर अपना समर्थन करेंगे, यह साफ था कि इस बार बीजेपी को अपने दम पर नंबर लाने की जरूरत है.


उधर, लोक जनशक्ति पार्टी ने राज्य में अलग चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया और नीतीश को चुनौती देते हुए उनके खिलाफ अपने उम्मीदवार उतार दिए. ऐसे में इस चुनाव में जीत के लिए बीजेपी को खुद ड्राइविंग सीट पर बैठनी पड़ी. पीएम मोदी से लेकर बीजेपी के तमाम स्टार प्रचारकों को रैलियों में लगाकर पूरी ताकत झोंक दी गई.


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