भारतीय स्टेट बैंक (SBI) ने बिहार विधानसभा चुनाव से पहले अक्टूबर महीने में राजानीतिक दलों को फंड देने के लिए 282 करोड़ रुपये के इलेक्टोरल बॉन्ड बेचे. इसके साथ ही इस योजना के तहत पार्टियों को अब तक 6493 करोड़ का फंड मिल चुका है. गौरतलब है कि चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता लाने के मकसद से साल 2018 में सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम की शुरुआत की थी.


अक्टूबर महीने में बिके चुनावी बॉन्ड


भारतीय स्टेट बैंक से आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक ये इलेक्टोरल बॉन्ड दिल्ली, पटना, गांधी नगर, भुवनेश्वर आदि शाखाओं में बेचे गए. भारतीय स्टेट बैंक द्वारा 19 से 28 अक्टूबर के बीच 279 बॉन्ड बेचे गए जिसमे 32 बॉन्ड एक-एक करोड़ के बिके थे. आंकड़ों के अनुसार बैंक की मुंबई की मुख्य शाखा से 130 करोड़ के बॉन्ड बिके, वहीं नई दिल्ली ब्रांच से 11.99 करोड़ के बॉन्ड बिके. पटना की शाखा से मात्र 80 लाख के बॉन्ड बिके. वहीं भुवनेश्वर से 67 करोड़ के बॉन्ड, चेन्नई से 80 करोड़ के बॉन्ड और हैदराबाद से 90 करोड़ के बॉन्ड की बिक्री हुई.


क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड


 राजनीतिक दलों के चुनावी चंदे को पारदर्शी बनाने के मकसद से केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2017-18 के बजट में चुनावी बॉन्ड शुरू करने की घोषणा की थी. चुनावी बॉन्ड खरीदने वालों के नाम गुप्त रखते जाते हैं. इन बॉन्ड्स पर बैंक कोई इंटरेस्ट नहीं देता है.


गौरतलब है कि बिना पहचान बताए कोई भी स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से एक करोड़ रुपये की राशि तक के इलेक्टोरल बॉन्ड्स खरीद सकता है और अपनी मनपसंद राजानीतिक पार्टी को फंड के तौर पर दे सकता है. बॉन्ड जारी करने वाले महीने के 10 दिनों के अंदर कोई भी व्यक्ति, लोगों का समूह एसबीआई की निर्धारित ब्रांच से बॉन्ड खरीद सकता है. जारी होने की तारीख से 15 दिनों की वैधता वाले बॉन्ड 1हजार रुपये, 10 हजार रुपये, एक लाख रुपये, 10 लाख रुपये और 1 करोड़ के गुणकों में जारी होते हैं. इन्हें नकद नहीं खरीदा जा सकता है. साथ ही बता दें कि खरीदार को बैंक में केवाईसी फॉर्म  भरकर जमा करना अनिवार्य होता है.


कितना मिल चुका है अब तक चंदा


आंकड़ों के अनुसार साल 2018 से लेकर अब तक देश के विभिन्न राजनीतिक दलों को बॉन्ड के माध्यम से 6493 करोड़ का चंदा मिल चुका है. रिप्रेजेंटेशन ऑफ द पीपल्स एक्ट (43 ऑफ 1951) के सेक्शन 29 ए के अनुसार उन्हीं पंजीकृत राजनीतिक पार्टियों को चुनावी बॉन्ड के तहत चंदा मिल सकता है, जिन्हें लोकसभा या विधानसभा के चुनाव में कम से कम एक फीसदी वोट हासिल हुए हों.


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