सचिन तेंदुलकर भारतीय क्रिकेट के सबसे चहेते क्रिकेटर हैं. उनकी उपलब्धियों ने उन्हें भारतीय क्रिकेट प्रशंसकों में एक बेहद खास गौरव हासिल करने में मदद की. एक ऐसा वक्त था जब भारतीय लाइन-अप सचिन तेंदुलकर की बल्लेबाजी पर निर्भर था और प्रशंसक मास्टर ब्लास्टर का बल्ला देखने के लिए टेलीविजन सेट पर अपनी आँखें चिपका देते थे. हालांकि, ऐसे दावे थे कि सचिन तेंदुलकर एक स्वार्थी क्रिकेटर थे, जो अपने व्यक्तिगत रिकॉर्ड के लिए खेलते थे, लेकिन बदलते समय के साथ सचिन ने सबका मुंहतोड़ जवाब दिया और आज उन्हें क्रिकेट का भगवान कहा जाता है.


रिकॉर्ड और उपलब्धियां तेंदुलकर के रास्ते में आने वाली हर आलोचना की देखरेख करती थी और अंत में वो फैंस के दिलों में जा बसते थे वो भी अपनी पारी की बदौलत. उनकी पारी चाहे वो मैच विजेता हो या नहीं वो सभी आज भी भारतीय प्रशंसकों के मन में है. तेंदुलकर 90 के दशक से भारतीय क्रिकेट का एक घरेलू नाम रहा है. लेकिन उनकी कप्तानी में ये सबकुछ उलट था और साल 1997 में वेस्टइंडीज के खिलाफ टेस्ट के दौरान उनके करियर के वो सबसे काले दिन थे.


सचिन तेंदुलकर ने 98 मैचों में टीम इंडिया का नेतृत्व किया. उनकी निराशाजनक कप्तानी के दौरान राष्ट्रीय टीम को 27 जीत और 52 में हार मिली. वह कप्तान के रूप में अपने मैच का केवल 28 प्रतिशत ही जीत सके. लेकिन 1997 बारबाडोस टेस्ट उनके करियर का आज तक का सबसे खराब पल था.


वेस्टइंडीज द्वारा पीछा करने के लिए भारत को 120 रनों का लक्ष्य दिया गया था, और जब अंपायरों ने तीसरा दिन खत्म किया तो मेहमान टीम 2/0 पर थी. तेंदुलकर जीत के प्रति आश्वस्त थे और उस रात, उन्होंने एक रेस्तरां के मालिक से कहा कि वे जीत के बाद अपनी पार्टी के लिए एक शैम्पेन तैयार रखें.


हालांकि, रफ ट्रैक पर, जहां भारतीय बल्लेबाज जिम्मेदारी से खेलने में नाकाम रहे और महान खिलाड़ी कर्टली एम्ब्रोस और इयान बिशप अपने खेल में टॉप पर थे. इन सभी ने मिलकर तेंदुलकर की अगुवाई वाली टीम को 81 रन पर समेट दिया गया.


सचिन ने ड्रेसिंग रूम में सभी खिलाड़ियों को दो टेस्ट मैचों की सीरीज के बाद अपनी क्षमताओं पर संदेह करते हुए सबक दिया. सौरव गांगुली, जो टीम के लिए नए थे, वो कप्तान को सांत्वना देने गए. जब वह सचिन के पास गए, तो तत्कालीन कप्तान ने उन्हें अगले दिन की सुबह की दौड़ के लिए तैयार होने के लिए कहा. गांगुली इसके लिए नहीं आए और तभी सचिन ने उन्हें धमकी दी कि वह उन्हें वापस घर भेज देंगे और उनका करियर खत्म कर देंगे. इसके बाद गांगुली ने काफी मेहनत की और उस दिन से लेकर सचिन की कप्तानी में उन्होंने दोबारा ऐसा मौका नहीं दिया.