Tokyo Paralympics 2020: रियो पैरालंपिक के बाद टोक्यो में एक बार फिर इंटरनेशनल पैरालंपिक कमिटी की अगुवाई में रिफ्यूजी पैरा एथलीटों की टीम ने हिस्सा लिया. इस बार टोक्यो में इस रिफ्यूजी टीम में छह एथलीट्स ने हिस्सा लिया. जिनमें से हरएक की कहानी मुश्किल हालात के बीच जिंदा रहने की चुनौतियों और उस से बाहर निकलकर अपना मुकाम बनाने की मुहिम है. आइये जानते हैं इन रिफ्यूजी पैरा एथलीट्स के बारे में.

 

परफैट हाकिजिमाना (ताईक्वोंडो): परफैट रवांडा के रिफ्यूजी कैम्प से टोक्यो पैरालंपिक में हिस्सा लेने के लिए पहुंचे. पूर्वी अफ्रीका के बुरुंडी प्रान्त में सिविल वार से जान बचाकर परफैट रवांडा के इस रिफ्यूजी कैम्प में पहुंचे थें. उन्होंने 1996 में एक फायरिंग में अपनी मां को खो दिया था. वो जिस रिफ्यूजी कैम्प में रह रहे थे वहां हुए हमले में परफैट के बाएं हाथ में गोली लग गई थी. जिस के चलते उनका हाथ पूरी तरह से बेकार हो गया.

 


 

इसके बाद उन्होनें स्पोर्ट्स को इस अवसाद से निकलने का जरिया बनाया और महज 16 साल की उम्र में ताइक्वांडो खेलने की शुरुआत कर दी. रवांडा के रिफ्यूजी कैम्प में रहते हुए परफैट ने रात दिन मेहनत की और टोक्यो पैरालंपिक तक का सफर पूरा किया.

 

अनस अल खलीफा (कैनोइंग): सीरिया के हमा शहर में पैदा होने वाली अनस अल खलीफा का पूरा बचपन एक सुनहरे कल की उम्मीद में रिफ्यूजी कैम्प में ही बीता. 2011 के सीरियाई युद्ध उनके और उनके परिवार के लिए घातक साबित हुए. जिसके बाद अनस ने अपने परिवार की देख रेख और रोजी रोटी कमाने के लिए जर्मनी में शरण ली. साल 2018 में एक, दो मंजिला इमारत में काम करने के दौरान अनस फिसल कर गिर गए और उनकी रीढ़ की हड्डी में गंभीर चोट आ गई. इसके चलते उनके शरीर का निचला हिस्सा हमेशा के लिए खराब हो गया. 

 


 

इसी बीच किस्मत से उनकी जिंदगी में कैनोइंग (canoe) के खेल ने दाखिला लिया. दरअसल चोट के बाद अनस ने स्पोर्ट्स में कुछ कर गुजरने की ठानी. इसी दौरान उनकी मुलाकात 1988 के सियोल ओलंपिक के मेडल विजेता ऑगनियाना दुशेवा से हुई. दुशेवा ने अनस को स्पोर्ट्स में कुछ कर गुजरने के लिए प्रेरित किया. जिसके बाद अनस ने कैनोइंग के खेल में अपने करियर की शुरुआत की. इसी बीच सीरिया में गोलीबारी की एक घटना में अनस के भाई की मौत हो गई. भाई की मौत ने अनस को और तोड़ दिया. हालांकि जब उन्हें पता चला कि उन्हें पैरालंपिक रिफ्यूजी टीम के लिए सिलेक्ट किया जा सकता है तो उन्हें एक बार फिर उम्मीद दिखाई दी. उन्होंने महसूस किया कि अगर वो पैरालंपिक में खेलते हैं तो इस से उनके भाई की आत्मा को भी खुशी मिलेगी और टोक्यो में आखिरकार उनका ये सपना पूरा हो गया. 

 

आलिया इस्सा (क्लब थ्रो): आलिया इस रिफ्यूजी टीम की ओर से पैरालंपिक में हिस्सा लेने वाली पहली महिला पैरा एथलीट हैं. महज चार साल की उम्र में ही आलिया स्माल पॉक्स की शिकार हो गई थी. तेज बुखार इसके चलते उनका ब्रेन डैमेज हो गया और वो हमेशा के लिए व्हील चेयर पर आ गई. आलिया साफ बोल भी नहीं पाती हैं. इन सब बातों के चलते आलिया को बचपन में लोगों के मजाक और भेदभाव का सामना करना पड़ा. जिसके बाद उन्होंने स्पोर्ट्स से जुड़ने की ठानी. 

 


 

सीरिया में कठिन हालात से निकलने के लिए आलिया के पिता ने ग्रीस में शरण ली थी, जहां 2001 में ही आलिया का जन्म हुआ. आलिया जब महज 16 साल की थी तब कैंसर के चलते उनके पिता की मृत्यु हो गई. इस घटना ने भी आलिया को बुरी तरह से तोड़ दिया. डिप्रेशन से बाहर निकलते हुए आलिया ने क्लब थ्रो के खेल का सहारा लिया. इस खेल में आलिया का पर्सनल बेस्ट रिकॉर्ड 16.40 मीटर का है जो उन्होनें वर्ल्ड पैर एथलेटिक्स ग्रांड प्रिक्स में मई 2021 में बनाया था. टोक्यो पैरालंपिक में हिस्सा लेकर आलिया ने दिखा दिया कि अगर आप में जोश और जुनून हो तो आप कठिन से कठिन हालात में भी कमाल कर सकते हैं.

 

इब्राहिम अल हुसैन (स्विमिंग): सीरिया के रहने वाले इब्राहिम अल हुसैन के खून में ही स्पोर्ट्स जुनून बनकर दौड़ता है. इब्राहिम का ताल्लुक एक खिलाड़ियों के परिवार से है. उनके पिता भी एशियन चैंपियनशिप में दो बार मेडल विजेता रह चुके हैं. इब्राहिम ने महज 5 साल की उम्र में ही तैराकी और जुडो की शुरुआत कर दी थी. 2011 में सीरियाई क्राइसिस के दौरान इब्राहिम के पिता और उनके 13 भाई-बहन सीरिया छोड़कर चले गए, जबकि इब्राहिम ने वहीं रुकने का फैसला किया.

 


 

एक रोज इब्राहिम का एक दोस्त गोलीबारी का शिकार हो गया. इब्राहिम सभी जोखिम के बारे में जानते हुए भी अपने दोस्त को बचाने के लिए घर से बाहर निकल गए. इसी बीच वहां एक बम धमाका हुआ जिसमें इब्राहिम का बायां पांव का निचला हिस्सा औए एंकल पूरी तरह से डैमेज हो गया. इस घटना के बाद भी इब्राहिम ने हार नहीं मानी और ग्रीस में शरण ली. जहां उन्होंने अपने इलाज के साथ एक बार फिर स्पोर्ट्स का रूख किया. 2016 के रियो पैरालंपिक में इब्राहीम इंडिपेंडेंट रिफ्यूजी पैरालंपिक टीम के ध्वजवाहक थे. ये एक ऐसा सम्मान था जिसकी इब्राहीम ने हमेशा से ही कल्पना की थी. इब्राहीम कहते हैं, "हमारे यहां अरेबिक में एक कहावत है नेकी कर दरिया में डाल. एक दिन वो नेकी पलटकर वापस तुम्हारे पास आएगी." शायद पैरालंपिक खेलों का हिस्सा बनना इब्राहीम की वो नेकी है जो उन्होनें अपने दोस्त की जान बचाने के लिए की थी. 

 

शाहराद नसजपोर (डिस्कस थ्रो): रिफ्यूजी पैरालंपिक टीम के होने की सबसे बड़ी वजह शाहराद हैं. ये ईरान में जन्में इस एथलीट का ही कमाल है कि पैरालंपिक खेलों में रिफ्यूजी एथलिटों की टीम भी हिस्सा ले रही है. शाहराद को जब पता चला कि रियो ओलंपिक में भी एक रिफ्यूजी टीम हिस्सा ले रही है तभी उन्होनें रियो पैरालंपिक में भी रिफ्यूजी टीम के लिए मुहिम चला दी. शाहराद पैदाइशी तौर पर सेरेब्रल पाल्सी के शिकार हैं. उन्होनें शुरुआत में टेबल टेनिस खेलना शुरू किया. हालांकि कई लोगों ने जब उनका ध्यान एथलेटिक्स की तरफ आकर्षित किया तो उन्होंने डिस्कस थ्रो का रुख किया.

 


 

2015 में शाहराद ईरान छोड़कर अमेरिका चले गए, जहां उन्होनें न्यूयॉर्क में शरण ली. 2016 में रियो पैरालंपिक के समापन समारोह में शाहजाद रिफ्यूजी टीम के ध्वजवाहक थे. शाहजाद का मानना है कि, "जिंदगी में रोजाना आपको कई बार ना शब्द सुनाई देगा, लेकिन लोगों की इस ना को जवाब के तौर पर ना लें. अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए अलग अलग रास्ते अपनाते रहें और अंत में आप खुद को वहां पाएंगे जहां पहुंचने का आपने कभी सपना देखा था." 

 

अब्बास करीमी (स्विमिंग): अब्बास का जन्म अफगानिस्तान में हुआ था. वो दोनों हाथों के बिना पैदा हुए थे. अफगानिस्तान जैसे देश में जहां आपको लगातार भेदभाव का सामना करना पड़ता है इस तरह के हालात में रहना आसान नहीं था. इसके चलते अब्बास का पूरा बचपन कठिनाइयों से भरा हुआ था. इस भेदभाव का अब्बास के दिमाग पर भी गहरा असर पड़ा और उन्हें एंगर इश्यू का भी सामना करना पड़ा. अब्बास ने बताया, "आप जब अफगानिस्तान में इस तरह की disabilty के साथ पैदा होते हो तो आपको होपलेस माना जाता है. बचपन में लोग मेरे शरीर की कमियों की वजह से मेरा मजाम उड़ाते थे."

 


 

इसी बीच अब्बास की जिंदगी में स्विमिंग का खेल आया. जिसके साथ  उन्होंने इस बात को महसूस किया कि भले ही उनके हाथ न हो लेकिन उनके पास दो पांव हैं जिनसे वो पुरी दुनिया जीत सकते हैं. अब्बास ने ठान लिया था कि अगर उन्हें जिंदगी में कुछ करना है तो उन्हें तालिबान के खतरे से जूझ रहे अफगानिस्तान से हर हाल में निकलना होगा. इसके बाद लगातार चार रिफ्यूजी कैम्प में भटकने के बाद अब्बास ने अंत में टर्की में शरण ली. टोक्यो पैरालंपिक तक का सफर तय कर अब्बास उन लाखों रिफ्यूजी लोगों की उम्मीद बन गए हैं जो अपने घर से दूर एक सुरक्षित जिंदगी जीने के लिए दरबदर भटक रहे हैं. 

 

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