Avinash Sable Journey: कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 में भारतीय खिलाड़ियों का शानदार प्रदर्शन जारी है. स्टीपलचेजर अविनाश साबले (Avinash Sable) ने 3000 मीटर रेस में सिल्वर मेडल जीत कर इतिहास रच दिया है. दरअसल, उन्होंने अपना नेशनल रिकॉर्ड तोड़कर यह सिल्वर मेडल अपने नाम किया है. उन्होंने सिल्वर मेडल जीतने के लिए 8:11:20 का समय लिया, लेकिन क्या आपको पता है कि अविनाश साबले की कहानी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है. साबले का अब तक का सफर चुनौतियों से भरा है, लेकिन इस खिलाड़ी के जज्बे को नहीं हरा पाया.


घर की माली हालात बहुत अच्छी नहीं थी


दरअसल, स्टीपलचेजर अविनाश साबले ने इस पीढ़ी के भारत के प्रमुख लंबी दूरी के धावक के तौर पर स्थापित किया है. साल 2015 में उन्होंने एक खेल के रूप में अपनाया और अब तक का सफर शानदार रहा है. महाराष्ट्र के बीड जिले के मांडवा गांव में अविनाश साबले का जन्म 13 सितंबर 1994 को हुआ था. अविनाश मुकुंद साबले का परिवार बेहद साधारण था. बहरहाल, घर की माली हालात बहुत अच्छी नहीं थी, माता-पिता किसान थे. वहीं, अविनाश को स्कूल जाने के लिए हर दिन छह किलोमीटर दौड़ना पड़ता था, क्योंकि उस रूट पर सार्वजनिक परिवहन उपलब्ध नहीं था. अविनाश साबले ने कभी भी बड़े होकर किसी भी खेल को अपना करियर बनाने के बारे में नहीं सोचा, वह सेना में शामिल होकर अपने परिवार की मदद करना चाहते थे.


12वीं के बाद महार रेजिमेंट का बने हिस्सा


अविनाश साबले 12वीं कक्षा पास करने के बाद भारतीय सेना में भर्ती हुए और 5 महार रेजिमेंट का हिस्सा बने. महार रेजिमेंट का हिस्सा बनने के बाद वह सियाचिन, राजस्थान और सिक्किम में तैनात रहे. दरअसल, कहा जाता है कि इस दौरान उन्होंने दो जलवायु के बीच काफी संघर्ष किया, क्योंकि जहां सियाचिन का तापमान आमतौर पर माइनस में रहता है, तो वहीं राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों में तापमान 50 डिग्री आम बात है. सेना के एथलेटिक्स कार्यक्रम में शामिल होने के बाद अविनाश साबले ने 2015 में ही स्पोर्ट्स रनिंग के बारे में थोड़ी बहुत बात समझी.


साथियों ने साबले के करियर को जब खत्म समझ लिया...


इसके बाद साबले सर्विसेस टीम का हिस्सा बने. हालांकि, साबले की टीम ने प्रतियोगिता जीती लेकिन वह व्यक्तिगत राष्ट्रीय क्रॉस कंट्री चैम्पियनशिप में पांचवें स्थान पर रहे. इस बीच साबले को चोट लग गई. नतीजतन, ट्रेनिंग की कमी के कारण उनका वजन काफी बढ़ गया. आलम यह था कि साबले के साथियों ने सेना में उनका करियर तकरीबन खत्म समझ लिया, लेकिन यह खिलाड़ी आसानी से हार कहां मानने वाला था. बहरहला, साबले ने जल्द ही 15 किलो से अधिक वजन कम किया और फिर से दौड़ना शुरू कर दिया. बात साल 2017 की है, जब एक रेस के दौरान सेना के कोच अमरीश कुमार का ध्यान साबले की तीव्रता पर गया. जिसके बाद उन्होंने साबले को स्टीपलचेज वर्ग में दौड़ने की सलाह दी.


साबले ने दूसरी बार नेशनल रिकॉर्ड तोड़ा


बहरहाल, साबले का दम पहली बार नेशनल लेवल पर साल 2019 के फेडरेशन कप में दिखा, जिसका आयोजन पटियाला में हुआ था. फेडरेशन कप में साबले ने दूसरी बार नेशनल रिकॉर्ड को तोड़ते हुए 8:28.94 का समय निकाला, जो उनके पिछले रिकॉर्ड से लगभग एक सेकेंड तेज था. फिर क्या था... साबले को दोहा में होने वाले IAAF विश्व चैंपियनशिप का टिकट मिल गया. जिसके बाद वह 1991 में दीना राम के बाद विश्व चैंपियनशिप में दौड़ने वाले पहले भारतीय पुरुष स्टीपलचेज बन गए. दरअसल, दोहा में आयोजित 2019 एशियाई एथलेटिक्स चैंपियनशिप में भी अविनाश साबले ने सिल्वर मेडल अपने नाम किया. इंटरनेशनल लेवल पर साबले का यह पहला मेडल था.


दोहा विश्व चैंपियनशिप के बाद बने नए सुपरस्टार


दरअसल, साल 2019 में दोहा विश्व चैंपियनशिप के बाद अविनाश साबले भारतीय एथलेटिक्स के नए स्टार बनकर उभरे. साबले यहां भी रूकने वाले नहीं थे, उन्होंने दो बार अपना ही राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ा. हीट में वह अपने राष्ट्रीय रिकॉर्ड समय से तीन सेकेंड तेज दौड़े, हालांकि वह रेस विवादों से घिरी रही. वहीं, इसके बाद साल 2020 के दिल्ली हाफ मैराथन में उन्होंने अपने 1:00:30 रन की मदद से मौजूदा हाफ मैराथन राष्ट्रीय रिकॉर्ड भी बनाया. बताते चलें कि अविनाश साबले 61 मिनट से भी कम समय में हाफ मैराथन खत्म करने वाले महज एकलौते भारतीय हैं. कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 में सिल्वर मेडल जीतने के बाद अविनाश साबले की निगाहें अब 2024 पेरिस ओलंपिक पर होंगी.


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