ओडिशा के कटक में बाराबती स्टेडियम इंडिया-साउथ अफ्रीका टी20 मैच के लिए सज-धज कर तैयार है. इस स्टेडियम से ठीक 40 किलोमीटर दूर एक गांव ऐसा भी है जहां क्रिकेट आज भी ‘वर्जित’ है. जगतसिंहपुर जिले का नुआगढ़ गांव, एक समय में क्रिकेट का गढ़ माना जाता था. उसी गांव में पिछले 21 साल से बल्ला-गेंद को छूने तक से डरता है. वजह है 1 मार्च 2004 की वह काली दोपहर, जिसने पूरे गांव से उसकी पूरी क्रिकेट टीम छीन ली.

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2004 की दर्दनाक घटना जिसने बदल दिया गांव

नुआगढ़ के 13 युवा खिलाड़ी, उत्कलमणि क्रिकेट क्लब की टीम, स्थानीय टूर्नामेंट के फाइनल में खेलने महाकालापाड़ा जा रहे थे. रास्ता पानी वाला था. महानदी के बहकूड़ा घाट पर नाव पलट गई, और सभी 13 खिलाड़ी नदी में डूब गए. इस दिल दहला देने वाली घटना के बाद गांव ने सामूहिक फैसला लिया, अब यहां क्रिकेट नहीं खेला जाएगा. न मैच, न टूर्नामेंट, न जश्न… खेल के नाम पर सिर्फ खामोशी.

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स्मारक बनाकर संभाला दर्द

घटना के तीन साल बाद, 2007 में गांववालों ने मिलकर एक स्मारक बनाया. एक टॉवर, जिस पर सभी 13 खिलाड़ियों के नाम गुदे हुए हैं. यह टॉवर गांव के बीच खड़ा है, जैसे हर दिन यह याद दिलाता हो कि क्रिकेट ने उनसे क्या छीन लिया है.

विधवाओं का दर्द

सबसे ज्यादा दर्द उन घरों में है, जहां से जवान बेटे-मर्द एक साथ चले गए. बिस्वजीत रे की पत्नी, रोजालिनी, आज भी उस दिन को नहीं भूल पाती हैं. उन्होंने कहा, “शादी को कुछ ही महीने हुए थे. मेरे पति बल्लेबाज भी थे, गेंदबाज भी. उसे क्रिकेट से जितना प्यार था, उसी ने उसकी जिंदगी ले ली.”