Yashasvi Jaiswal, Sarfaraz Khan and Dhruv Jurel Story: राजकोट के मैदान पर भारत ने टेस्ट सीरीज के तीसरे मुकाबले में इंग्लैंड को ऐतिहासिक 434 रनों से मात दी. इस जीत के साथ भारत ने सीरीज पर 2-1 की बढ़त बना ली है. भारतीय टीम के इस जीत में तीन युवा सितारों ने कमाल का प्रदर्शन किया. जिसकी चर्चा हर कोई कर रहे हैं. ये तीन खिलाड़ी और कोई नहीं बल्कि यशस्वी जायसवाल, सरफराज खान और ध्रुव जुरेल हैं. यशस्वी ने कुछ समय पहले भारतीय टीम के लिए डेब्यू किया है तो दूसरी ओर सरफराज और ध्रुव को राजकोट में डेब्यू करने का मौका मिला. हालांकि इन तीनों को अपनी इस सफलता के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा. आज हम आपको इन तीनों खिलाड़ियों की संघर्ष की कहानी बताएंगे.


टेंट में रहने को मजबूर थे यशस्वी जायसवाल
भारतीय टीम के लिए लगातार अपने बल्ले से धमाका करने वाले यशस्वी जायसवाल की कहानी काफी मार्मिक है. यूपी के भदोही में जन्मे यशस्वी 12 साल की उम्र में मुंबई पहुंचे और आजादा मैदान में क्रिकेट के सफर की शुरुआत की. यहां उन्हें मुस्लिम यूनाइटेड क्लब के कोच इमरान सिंह से संपर्क हुआ. कोच इमरान ने यशस्वी को कहा कि अगर मैच में अच्छा परफॉर्म किया तो टेंट में रहने को मिलेगा. इसके बाद यशस्वी ने कमाल किया और उन्हें टेंट में जगह मिली.


अपने जीवनयापन के लिए यशस्वी ने डेयरी में काम किया और गोलगप्पे तक बेचे. फिर एक दिन उनपर कोच ज्वाला सिंह की नजर पड़ी. यहां से यशस्वी के जीवन ने करवट लिया और ज्वाला सिंह ने उन्हें तराशने का काम शुरू कर दिया. वह उन्हें सबअर्बन सांताक्रूज में उन्हें अपनी कोचिंग में ले गए और उन्हें शानदार ट्रेनिंग दी. अपनी ट्रेनिंग के बाद यशस्वी ने कमाल किया और उन्होंने विजय हजारे ट्रॉफी में 2019 में बल्ले से धमाल मचा दिया. इसके बाद उन्हें अंडर-19 वर्ल्ड कप टीम में भी जगह मिली. जहां उन्हें कमाल की बल्लेबाजी के लिए प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट चुना गया. यशस्वी लगातार बल्लेबाजी पर मेहनत करते रहे और उन्हें आखिर कार भारत के लिए डेब्यू करने का मौका मिल गया. यशस्वी आज भारत के लिए टेस्ट और टी20 इंटरनेशनल में जमकर धमाल मचा रहे हैं.


ध्रुव जुरेल की मां को बेचने पड़े गहने
ध्रुव जुरेल के पिता नेम सिंह कारगिल युद्ध लड़ चुके हैं. ध्रुव भी अपने पिता की तरह आर्मी में जाना चाहते थे. लेकिन आर्मी स्कूल में जब उन्होंने पहली बार क्रिकेट खेला तो उन्हें इस खेल से प्यार हो गया. वह इसमें ही अपना भविष्य बनाना चाहते थे. हालांकि उनके पिता यह नहीं चाहते थे कि ध्रुव क्रिकेटर बने. ध्रुव जब 14 साल के थे जब उन्हें एक क्रिकेट किट चाहिए थी. उस समय उनके पिता उन्हें पढ़ाई पर ध्यान लगाने के लिए कहा. हालांकि जुरेल जिद्द पर आ गए और किट खरीदने के लिए खुद को बाथरूम में बंद कर माता-पिता को घर से भागने की धमकी दी.


बेटे की यह बात सुन उनकी मां भावुक हो गईं और अपनी सोने की चेन बेचकर उन्हें क्रिकेट किट दिलवा दिया. जुरेल किट पाकर काफी खुश थे. हालांकि बड़ा होकर उन्हें अहसास हुआ कि उनकी मां ने उनके लिए कितना बड़ा बलिदान दिया. इस घटना के बाद से जुरेल ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और बल्ले से कमाल करते गए. उनके इस कमाल को देखते हुए उन्हें राजकोट टेस्ट में भारत के लिए टेस्ट डेब्यू करने का मौका मिला.


सरफराज को सुनने पड़ते थे ताने
राजकोट टेस्ट में डेब्यू करने वाले सरफराज खान का बल्ला घरेलू क्रिकेट में जमकर चला. उन्होंने 70 की औसत से फर्स्ट क्लास में रन बनाए. हालांकि सरफराज की डेब्यू की राह आसान नहीं थी. उन्हें इसके लिए काफी इंतजार करना पड़ा. इस इंतजार के साथ-साथ इस प्रतिभावान को काफी ताने सुनने पड़े. कई लोगों ने यह तक कहा कि ज्यादा वजन के कारण उन्हें मौका नहीं दिया जाता है. घरेलू क्रिकेट, आईपीएल हर जगह इस खिलाड़ी को उनके शरीर को लेकर मजाक बनाया गया.


हालांकि इन तानों केबाद भी सरफराज ने हार नहीं मानी और फिटनेस के साथ-साथ बल्लेबाजी पर लगातार काम करना जारी रखा. सरफराज की सफलता में उनके पिता नौशान खान का अहम किरदार रहा. जिन्होंने खुद बल्लेबाजी में उन्हें तराशा. फर्स्ट क्लास में 14 शतक और 13 अर्धशतक लगाकर 4042 रन बनाने वाले सरफराज ने अपने डेब्यू टेस्ट की दोनों पारियों में 62 और 68 रनों की शानदार अर्धशतकीय पारी खेली. सरफराज जिस अंदाज में खेलते हुए नजर आए उसकी सबने तारीफ करते हुए उन्हें भविष्य का बड़ा सितारा बताया.  


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