भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान सौरव गांगुली का अगला बीसीसीआई अध्यक्ष बनना तय हो गया है. गांगुली 10 महीने के लिए बीसीसीआई के अध्यक्ष पद को संभालेंगे. गांगुली से पहले इस पद के लिए कई बड़े नामों की चर्चा थी लेकिन अचानक से उनको बीसीसीआई अध्यक्ष बनाए जाने के पीछे भी एक अलग कहानी है.


भारतीय क्रिकेट में हमेशा से ही यह कहा जाता रहा है कि क्रिकेट प्रशासन में पूर्व खिलाड़ियों की भागिदारी होनी चाहिए लेकिन इसके बावजूद बोर्ड में लंबे समय से राजनेताओं का दबदबा रहा है. यह अच्छी पहल है कि क्रिकेट के इस बड़े पद इस खेल जुड़े किसी व्यक्ति को ही नियुक्त गया है लेकिन गांगुली का अध्यक्ष बनना भी कहीं ना कहीं राजनीतिक उद्देश्यों जुड़ा हुआ है.


आपको बता दें कि साल 2015 में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा भारतीय क्रिकेट में पारदर्शिता लाने के लिए लोढ़ा समिति का गठन किया गया था. इस समिति का क्रिकेट में भ्रष्टाचार, मैच फिक्सिंग, सट्टेबाजी जैसे बड़े मुद्दों से पार पाने के लिए सुझाव देना था. इसके साथ ही लोढ़ा समिति को यह भी सुनिश्चित करना था कि राजनेता भारतीय क्रिकेट प्रशासन से दूर रहें लेकिन गांगुली के संदर्भ यह एक क्रिकेटर से राजनेता बनने का कहीं एक रास्ता तो नहीं !


सौरव गांगुली की ठीक यही कहानी है - साल 2000 में जब भारतीय क्रिकेट मैच फिक्सिंग के बंबडर का सामना कर रही थी उस समय गांगुली ने अपनी कप्तानी में टीम को इस बुरी परस्थिति से निकालने में अहम भूमिका निभाई थी और अब एक बार फिर बिखरी हुई बीसीसीआई को एकजुट करने की जिम्मेदारी गांगुली के कंधे पर आ गई है.


लंबे समय के अध्यक्ष पद को लेकर चल रही गहमा गहमी के बाद रविवार देर रात भारतीय क्रिकेट बोर्ड को आखिरकार अपना बॉस मिल गया.


गांगुली बीसीसीआई के अध्यक्ष बनने के पहले बंगाल क्रिकेट के अध्यक्ष पद पर बने हुए हैं. इस पद पर गांगुली का कार्यकाल पांच सालों के लिए था लेकिन इसके बावजूद गांगुली ने सिर्फ 10 महीनों के लिए बीसीसीआई का अध्यक्ष बनने का फैसला किया. बीसीसीआई के अध्यक्ष बनने के बाद गांगुली को कैब के अध्यक्ष पद को छोड़ना होगा. इसके अलावा लोढा समिति के सिफारिशों के आधार पर गांगुली 10 महीनों के बाद तीन सालों के लिए कूलिंग पीरियड में चले जाएंगे. इन तीन सालों में गांगुली किसी तरह के क्रिकेट प्रशासन के पद पर काम नहीं कर सकते हैं.


अब सवाल यह उठता है कि आखिर 10 महीने के लिए गांगुली ने कैब में अपने बचे एक साल के कार्यकाल को क्यों कुर्बान किया, क्यों गांगुली ने आईपीएल में सालाना पांच करोड़ से भी अधिक का अपना नुकसान किया जो उन्हें कमेंट्री और टीम के मेंटॉर की सेवाओं के बदले उन्हें भुगतान किया जाता है. क्योंकि बीसीसीआई के अध्यक्ष बनने के बाद गांगुली किसी अन्य पद पर काम नहीं सकते हैं.


इससे पहले कि हम इन प्रश्नों का उत्तर दें, आइए समझते हैं कि बीसीसीआई के अध्यक्ष बनने की पीछे गांगुली और इससे जुड़े लोंगों की क्या मंशा है. दरअसल मौजूदा समय में देश के अधिकांश राज्यों में बीजेपी का शासन है.


कुछ राज्य ऐसे हैं जहां बीजेपी अपनी पकड़ मजबूत बनाने के फिराक में है. इसी कड़ी में बीसीसीआई से जुड़े बीजेपी के कुछ शिर्ष नेता पार्टी के भविष्य की योजनाओं को सफल बनाने के लिए देश लोकप्रिय क्रिकेटरों का सहारा ले रही है.


आपको बता दें कि बीसीसीआई के अध्यक्ष बनने वाले आखिरी टेस्ट क्रिकेटर महाराजा कुमार विजयनगरम थे जिन्होंने साल 1954-56 तक इस पद को संभाला था. साल 2014 में शिवलाल यादव और सुनील गावस्कर ने कुछ समय के लिए अंतरिम प्रमुख के रूप में काम किया था जब बोर्ड और कोर्ट के बीच विवाद का दौर चल रहा था.


ऐसे में अब बात साफ हो गई है कि गांगुली को बीसीसीआई का प्रमुख बनने के पीछे बीजेपी की एक खास रणनीति के तहत हुआ है. बीजेपी सीधे तौर पर गांगुली को पार्टी के एक बड़े चेहरे के तौर इस्तेमाल करना चाहती है यही वजह है कि बीसीसीआई अध्यक्ष के पद के लिए बीजेपी से जुड़े कई बड़े नामों को दरकिनार कर गांगुली के नाम पर मूहर लगाया गया.


सौरव गांगुली बंगाल में एक बड़ा चेहरा माना जाता है. ऐसे में बीजेपी साल 2021 में होने वाले चुनाव में अपने प्रमुख प्रतिद्वंदी तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ गांगुली को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करेगी. गांगुली ने भी अपने राजनीतिक करियर को बानने के सिर्फ 10 महीने के लिए अध्यक्ष बनकर चतुराई भरा फैसला लिया.


ऐसे में अगर बीजेपी की यह चाल सफल हो जाती है तो यह साफ है कि बंगाल में टीएमसी और ममता बनर्जी के खिलाफ गांगुली से बड़ा चेहरा कोई और नहीं हो सकता है.


भारत के महान कप्तानों में से एक गांगुली को अच्छी तरह से पता है कि उन्हें कब कौन सा फैसला लेना है. ऐसे में टीम इंडिया के कप्तान से लेकर कैब अध्यक्ष तक, और अब बीसीसीआई अध्यक्ष के बाद कहीं गांगुली की नजर बंगाल की कप्तानी पर तो नहीं ?


बीसीसीआई के इस नए अध्यक्ष गांगुली के साथ बीजेपी ने एक मजबूत साझेदारी कर ली है. यह एक ऐसी साझेदारी बनी है जिसमें जीत की संभावना प्रबल है. ऐसे में कहा जा सकता है की क्रिकेट के मैदान बाद अब बाहर भी गांगुली ने एक बेहतरीन मास्टर स्ट्रोक लगाया है.