Assembly Election 2022: इन चुनावी नारों ने सत्ता का रूख बदलने का किया था काम, पढ़िए कुछ दिलचस्प चुनावी नारे
इस महीने पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने जा रहा है. अलग-अलग राजनीतिक दल चुनाव जीतने के लिए एक से बढ़ कर एक नारे लगा रहे हैं. पार्टियां इन नारों के जरिए ही एक दूसरे पर निशाना साधते हैं. राजनीतिक नारों के माध्यम से राजनीतिक दल अपने विचार भी लोगों तक पहुंचाते हैं. अगर इतिहास पर नजर डालें तो ये नारे सरकार बनाने और गिराने का तक का काम कर चुकी हैं. आज की स्टोरी में हम आपको ऐसे ही कुछ फेमस नारों के बारे में बताने जा रहे हैं.
साल 1951 के आम चुनाव में कांग्रेस पार्टी का नारा था, 'स्थायी, असांप्रदायिक, प्रगतिशील सरकार के लिए.'
साल 1962 के चुनाव के वक्त बीजेपी की पूर्ववर्ती भारतीय जनसंघ का नारा था, 'वाह रे नेहरू तेरी मौज, घर में हमला बाहर फौज'.
इमरजेंसी के वक्त जनता पार्टी ने नारा दिया, 'इंदिरा हटाओ, देश बचाओ'. 1989 के लोकसभा चुनाव के वक्त वीपी सिंह की पार्टी का नारा था, 'गालों पर जो लाली है, तोपो की दलाली है'. इसके अलावा एक और नारा था, 'राजा नहीं फकीर है, भारत की तकदीर है'.
1991 के यूपी विधानसभा चुनाव के वक्त बीजेपी का नारा था, 'राम लला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे'.
2004 के लोकसभा चुनाव के वक्त कांग्रेस का नारा था, 'कांग्रेस का हाथ, आम आदमी के साथ'.
साल 2007 के विधानसभा चुनाव के वक्त बीएसपी के दो नारे लोकप्रिय हुए थे. पहला, 'चढ़ गुंडों की छाती पर, मुहर लगेगी हाथी पर' और दूसरा, 'हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा, विष्णु, महेश है'.
2012 के यूपी विधानसभा चुनाव के वक्त अखिलेश यादव ने नारा दिया था, 'जिसका जलवा कायम है, उसका नाम मुलायम है'.
2017 के चुनाव में बीजेपी ने नारा दिया था. 'न गुंडाराज न भ्रष्टाचार, अबकी बार भाजपा सरकार'.
2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी ने नारा दिया था, 'अच्छे दिन आने वाले हैं' वहीं 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी का नारा था, 'एक बार फिर मोदी सरकार'.
इस साल के यूपी विधानसभा के चुनाव में बीजेपी का नारा है, 'जो राम को लाए हैं हम उनको लाएंगे'. वहीं समाजवादी पार्टी का नारा है, '22 में बाईसकिल' इसके अलावा 'कृष्णा-कृष्णआ हरे हरे, अखिलेश भैया घरे घरे'. अगर कांग्रेस की बात करें तो उसका नारा है. 'लड़की हूं, लड़ सकती हूं'.