Holi 2022: भक्तों ने ब्रज में खेली अनूठी होली, श्री कृष्ण और श्री बलदाऊ को मंगल गीतों से किया छप्पन भोग
भारत सहित पूरे दुनिया में रंगों के त्योहार (Color Festival) होली (Holi) का विशेष महत्व है. रंगों का यह त्योहार मन को हर्षोल्लास से भर देता है, लोग इस दिन ऊंच-नीच, रंग भेद भूल कर होली के रंग में रंग कर एक समान हो जाते हैं. पूरे भारत में होली अलग-अलग तरह से मनाई जाती है, लेकिन ब्रज की होली (Braj Holi) अपनी अनूठी और अनोखी परंपराओं के कारण पूरे विश्व में प्रसिद्ध है. वैसे तो पूरे देश में एक या दो दिनों तक होली खेली जाती है, लेकिन ब्रज में वसंत पंचमी (Vasant Panchami) से लेकर चैत्र कृष्ण दशमी (Chaitra Krishna Dashami) तक यानि लगभग पूरे 50 दिनों तक होली का रंग ब्रज के कण-कण में छाया रहता है.
मथुरा में ब्रज की लट्ठ मार होली के अलावा कई और तरह की होली की खेली जाती है, इसी दौरान गोकुल में छड़ीमार होली का आयोजन किया जाता है. भगवान कृष्ण का बचपन गोकुल में ही बीता था. मान्यता है छड़ीमार होली के दिन बाल कृष्ण के साथ गोपियां छड़ी हाथ में लेकर होली खेलती हैं, क्योंकि भगवान बालस्वरूप थे. इस उम्मीद के साथ कि, श्रीकृष्ण को कहीं चोट न लग जाए, इसलिए गोकुल में छड़ीमार होली खेली जाती है. इस दिन बच्चे भगवान श्रीकृष्ण और श्री बलदाऊ का रूप धारण करते हैं.
इस छड़ी मार के होली के दिन भगवान श्रीकृष्ण और श्री बलदाऊ का रूप धारण किये बच्चे जहां जाते हैं, वहां उनका ढोल-बाजों के साथ फूल बरसाए जाते हैं. इस दौरान माहौल भक्तिमय हो जाता है. छड़ीमार होली का उत्सव सदियों से चला आ रहा है, यह छड़ी मार होली खुद में एक अनोखी विरासत समेटे हुए है.
इस छड़ी मार होली की शुरूआत यमुना किनारे स्थित नंदकिले के नंदभवन में ठाकुरजी के समक्ष राजभोग का भोग लगाकर होती है. जिसमें पुरुष, महिला, युवक, युवतियां, बूढ़े, बच्चे पूरे श्रद्धा भाव शामिल होते हैं. इस दौरान भक्त मंगल गीतों से उनका सुमिरन करते हैं और एक दूसरे को बधाई संदेश देते हैं.
हजारों सालों से चली आरही परंपराओं का निर्वहन करते हुए आज भी हर साल छड़ी मार होली का आयोजन उसी भक्ति, श्रद्धा और जोश के साथ किया जाता है. होली खेलने वाली गोपियां 10 दिन पहले से छड़ीमार होली की तैयारियां शुरू कर देती हैं, गोपियों को दूध, दही, मक्खन, लस्सी, काजू बादाम खिलाकर होली खेलने के लिए तैयार किया जाता है.