In Pics: कैसे थे आदिवासियों के 70 साल पुराने रीति-रिवाज, तस्वीरों में देखिये परंपरा और पहनावे की झलक
जनजाति क्षेत्र में रहने वाले या कहें आदिवासी, उनकी परंपरा, पहनावा, रीति-रिवाज, रहन-सहन शहरी क्षेत्र से बिलकुल अलग होता है.
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View In Appकुछ जनजाति समाज ऐसे भी हैं, जो शहरी क्षेत्र में आते ही नहीं हैं और कुछ की प्रथाएं भी सामने नहीं आई.
उदयपुर में एक ऐसी जगह है, जहां 70 साल पहले देश में जनजाति क्षेत्र के समाज कैसे थे, उनका पहनावा क्या था, उनके देवी-देवता सहित उनकी प्रथाओं से जुड़ी वस्तुओं को सहेज रखा गया है.
उदयपुर स्थिति भारतीय लोक कला मंडल में ये सारी चीजें रखा गया है. जहां 70 साल पहले देशभर के जनजाति क्षेत्र के व्यक्तियों की वस्तुएं रखी हुई है.
भारतीय लोक कला मंडल के निदेशक लाइक हुसैन ने बताया कि भारतीय लोक कला मंडल के संस्थापक पद्मश्री देवीलाल सामर ने 22 फरवरी 1952 में भारतीय लोक कला मंडल की स्थापना की थी.
इसका उद्देश्य भारतीय आदिम लोक संस्कृति संरक्षण, सर्वेक्षण, संवर्धन, लेखन और प्रचार प्रसार दिलाना था. इसके लिए उन्होंने पूरे भारत का भ्रमण करने के साथ भारत के विभिन्न लोक संस्कृति का अध्ययन किया.
भ्रमण के साथ उन्होंने राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, त्रिपुरा, मणिपुर, नागालैंड, मेघालय सहित अन्य राज्यों की आदिवासी कला और संस्कृति को संग्रहित किया और यहां लाए.
यहां वर्ष 1940 से 1960 तक के जनजाति क्षेत्र में रहने वाले व्यक्तियों की वस्तुएं हैं. लोक कला मंडल शहर के बीच चेतक सर्कल के पास स्थित है. यहां परिसर में पहले फ्लोर पर कठपुतली शो होता है और इसी के साथ संग्रहालय है.
इस संग्रहालय में महिलाएं किस के गहने पहनती थी, आदिवासी समाज के लोक देवी देवताएं कौन थे, वह किस प्रकार के वाद्य यंत्र बजाते हैं, उनकी शादियां कैसे होती थी इन सब चीजों का संग्रह किया गया है.
इसके अलावा रीति रिवाज क्या थे, महिलाओं के मेहंदी मांडने कैसे थे, धार्मिक फेस्टिवल कैसे होते थे सहित अन्य वस्तुओं का संग्रह है.
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