Mahashivratri 2022: जानिए कैसे Mumbai के इस प्राचीन शिव मंदिर का नाम पड़ा बाबुलनाथ मंदिर, शिवरात्रि पर लाखों भक्त करते हैं दर्शन
Babulnath Temple Mumbai : महाराष्ट्र के मुंबई में स्थित भगवान शिव (Lord Shiva) का मंदिर बाबुलनाथ मंदिर (Babulnath Temple) पूरे देश में काफी फेमस है. यही वजह है कि शिवरात्रि (Mahashivratri) के दिन यहां पर भक्तों की भारी भीड़ आती हैं. इसके साथ ही हर सोमवार को भी यहां विशेष पूजा की जाती है. चलिए बताते हैं आपको इस मंदिर की रोचक कहानी.....
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View In Appहमारे देश के प्राचीन मंदिरों में से एक बाबुलनाथ मंदिर मुंबई में गिरगांव चौपटी में मालाबार हिल्स की पहाड़ी पर बना हुआ है. बता दें कि इस मंदिर के पास 17.84 किलोमीटर लंबी मीठी नदी भी है.
इस मंदिर को मराठी शैली की वास्तुकला से बनाया गया है. विदेश से काफी भक्त इस मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं. बात करें मंदिर के नाम की तो बताया जाता है कि एक ग्वाले ने इस मंदिर में स्थित शिवलिंग को अपने गुरु श्री पांडुरंग को दिखाया था. जिसका नाम बाबुल था. बस इसी वजह से इस मंदिर का नाम श्री बाबुलनाथ पड़ा.
इसके साथ ही एक मान्यता ये भी है कि मंदिर में स्थापित शिवलिंग बबूल के पेड़ की छाया में पाया गया था. जिसके बाद मंदिर का नाम श्री बाबुलनाथ नाम रख दिया गया.
बता दें कि मंदिर का निर्माण साल 1806 में हुआ था और साल 1840 में मंदिर में भगवान शिव के परिवार के सदस्यों की मूर्तियों स्थापित की गई. जिसमें माता पार्वती, श्री गणेश जी, कार्तिकेय, नागदेव आदि के साथ शीतला माता, हनुमान जी, लक्ष्मीनारायण, गरूण और चंडदेव आदि की मूर्तियों भी शामिल थी. इस वक्त इस मंदिर की देखभाल श्री बाबुलनाथ महादेव देवालय संस्था द्वारा की जा रही है.
इस प्राचीन मंदिर का इतिहास भी बहुत ही रोचक है. एक पौराणिक कथा के अनुसार मालाबार की पहाड़ी पर आज से लगभग 300 साल पहले बड़ा चरागाह रहता था. पहाड़ी और उसके आस-पास की जमीन का ज्यादातर हिस्सा सुनार पांडुरंग के पास था.
इस समृद्ध सुनार के पास कई गायें थी, जिसके लिए पांडुरंग ने एक चारवाहा रखा हुआ था. जिसका नाम बाबुल था. सभी गाय में से कपिला नाम की गाय सभी से ज्यादा दूध देती थी.
फिर पांडुरंग ने एक दिन देखा कि कपिला कुछ दिनों से बिल्कुल भी दूध नहीं दे रही है.जिसके बाद उसने बाबुल से इसकी वजह पूछी औऱ बाबुल ने जो उत्तर दिया उसे सुनकर सुनार हैरान हो गया.
बाबुल ने बताया ये गाय घास खाने के बाद एक विशेष स्थान पर जाकर अपना दूध फेंक आती है.इसके बाद सुनार ने उस जगह की खुदाई करवाई. उस खुदाई में काले रंग का स्वयंभू शिवलिंग निकला था. तब से लेकर आजतक उस स्थान पर बाबुलनाथ का पूजन किया जाता आ रहा है.
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