भगवान महाकाल की अंतिम सवारी में 'शाही' शब्द को लेकर विवाद, साधु-संतों की क्या है प्रतिक्रिया?
इसी परंपरा के तहत अंतिम सवारी को शाही सवारी का नाम देने को लेकर विवाद उपज गया है. साधु संत शाही शब्द हटाने को लेकर मिली जुली प्रतिक्रिया दे रहे हैं.
उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर की सवारी सावन और भादो मास में निकलती है. भादो मास के दूसरे सोमवार भगवान की अंतिम सवारी रहती है जो कि शाही ठाठ बाट के साथ निकलती है.
इसी वजह से इस सवारी को शाही सवारी का नाम दिया गया है. हालांकि शाही शब्द उर्दू होने की वजह से नया विवाद उपज गया है.
महामंडलेश्वर शैलेषानंद महाराज के मुताबिक प्राचीन समय से कुछ परंपराएं चली आ रही है जिसमें उर्दू शब्दों का भी इस्तेमाल किया जा रहा है.
वर्तमान समय में इस शब्द को बदलने की आवश्यकता है. उनका कहना है शाही के स्थान पर राजसी सवारी नाम दिया जाना चाहिए.
इस पूरे मामले को लेकर महामंडलेश्वर सुमन महाराज का कहना है कि भगवान महाकाल के आगे इन शब्दों का कोई महत्व नहीं है.
यदि इन्हें बदल भी दिए जाए तो इससे परंपरा में कोई फर्क नहीं पड़ेगा. उनका यह भी कहना है कि सिंहस्थ महापर्व के दौरान शाही स्नान होता है तब भी शाही स्नान नाम को परिवर्तित किया जाना चाहिए.
भगवान महाकाल की सवारी प्राचीन काल से ही निकल रही है. सवारी में कई बार बदलाव देखने को मिले.
इस बार मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव के निर्देश पर भगवान महाकाल की सवारी में जनजाति समूह के नृत्य और प्रस्तुति भी देखने को मिली है.
भाद्र पक्ष के दूसरे सोमवार भगवान महाकाल सात रूपों में दर्शन दिए. केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया परंपरा का निर्माण करने के लिए उज्जैन पहुंचे. उन्होंने अंतिम सवारी में भगवान महाकाल की आरती की. भगवान महाकाल की सवारी में हेलीकॉप्टर से पुष्प वर्षा भी की गई.