नेत्रहीन बच्चों की ज्योति बन कर रहीं पालन, मनेंद्रगढ़ की गीता मां की तारीफ में पढ़े जाते हैं कसीदे
छत्तीसगढ़ के मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर (MCB) जिला मुख्यालय मनेंद्रगढ़ के आमाखेरवा में नेत्रहीन विद्यालय का संचालित होता है. यहां मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के तीन दर्जन से ज्यादा बच्चे रहकर पढ़ाई करते हैं. घर से माता-पिता से दूर रह कर यहां नेत्रहीन बच्चे पढ़ते हैं.
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View In Appयहां काम करने वाली गीता इन बच्चों को कभी एहसास नहीं होने देतीं कि वे अपनी मां से दूर हैं. बीते 15 सालों से नेत्रहीन विद्यालय में काम करने वाली 53 वर्षीय गीता नेत्रहीन विद्यालयों के बच्चों की अब जगत मां का दर्जा प्राप्त कर नेत्रहीन बच्चों की ज्योति बन कर पालन कर रही हैं.
नेत्रहीन विद्यालय में अध्ययनरत बच्चे भी गीता को गीता मां कहकर पुकारते हैं. गीता को भी इन बच्चों की सेवा करने किसी पुण्य कार्य से कम नहीं लगता है. गीता कहती भी हैं मैं इनको नेत्रहीन बच्चा समझती ही नहीं हूं. मैं अपने बच्चे जैसा मानकर इन बच्चों की सेवा करती हूं.
गीता रजक का कहना है मेरे खुद 2 बच्चे हैं, जिनमें एक बेटी और एक बेटा है. जैसे मैं अपने बच्चों को पालती हूं वैसे इन बच्चों को पालती हूं. गीता बताती हैं इन बच्चों की देखरेख कर मुझे जो पैसे नेत्रहीन विद्यालय द्वारा दिये जाते हैं, उन पैसे से मैं अपने बच्चों का लालन पालन करती हूं.
नेत्रहीन विद्यालय के बच्चों की देखभाल करने वाली गीता खुद तो बस 5वीं पास हैं, लेकिन इन नेत्रहीन बच्चों के अध्ययन कार्य मे भी गीता सहयोग करती हैं. नेत्रहीन विद्यालय के बच्चे जब स्टडी रूम में पढ़ाई करते हैं तो किताबें निकालने के अलावा स्टडी रूम के साफ सफाई को लेकर भी खास ख्याल रखती हैं.
इसके अलावा पढ़ाई के दौरान बच्चों को प्यास लगने पर पानी लाकर देना, चाय बनाना गीता की दिनचर्या में शामिल है. गीता रजक खुद तीन बच्चों की मां हैं. एक बेटे की मौत बीमारी से हो गई. दो बच्चे अब हैं, जिनमें एक बेटी और एक बेटा है. 10 साल पहले पति की बीमारी से मौत के बाद गीता हार नहीं मानीं और बच्चों को बड़ा कर उन्हें अपने पैरों पर खड़ा किया.
गीता का बेटा धोबी का काम करता है. उनकी एक बेटी है जिसकी शादी गीता ने अपने दम पर की है. गीता के बेटे और बेटी की शादी हो चुकी है और अब ज्यादातर समय गीता रजक नेत्रहीन विद्यालय में ही गुजारती हैं.
नेत्रहीन विद्यालय के व्यवस्थापक राकेश गुप्ता ने बताया कि गीता रजक पिछले 15 सालों से आया का दायित्व निभा रही हैं. राकेश बताते हैं कि विद्यालय के छोटे बच्चों को नहलाने तक का काम यह करती हैं. इसके अलावा नेत्रहीन विद्यालय के छात्रों के कपड़े धोना, खाना बनाकर खिलाना, बर्तन धोना, छात्रों के बेड लगाने के अलावा कई कार्य करती हैं.
विद्यालय में 10 घण्टे काम करने के बाद भी जब कभी गीता की जरूरत होती है उन्हें बुला लिया जाता है और वह हर कार्य करती हैं. नेत्रहीन विद्यालय के बच्चों की जब तबियत खराब होती है तो उन्हें अस्पताल ले जाने दवाई लाने और दवाई समय पर खिलाने का काम भी गीता के जिम्मे है.
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