Kashi Vishwanath Temple: महमूद गजनवी से लेकर मुगलों के 'हमले' तक, कई बार उजड़कर बसी बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी, जानिए कितनी बार बना मंदिर
काशी में चल रहे विवाद के बीच एक और किताब आई है जो विश्वनाथ मंदिर के इतिहास से जुड़ी है. विक्रम संपथ की हाल ही में आई किताब “वेटिंग फॉर शिवा -अन अर्थिंग द ट्रूथ और काशी ज्ञानवापी” काफी चर्चा का विषय बनी हुई है.
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View In App1212 में बंगाल के सेना राजा विश्वरूप ने शहर के बीचोबीच स्तंभ स्थापित कर दिया. उसमें लिखा था कि यह पूरी नगरी विश्वनाथ की है. कुछ साल बाद गुजरात के व्यापारी वस्तुपाल ने यहां भव्य मंदिर का निर्माण कराया.
किताब बताती है कि काशी प्राचीन समय से ही हिंदुओं के लिए महत्वपूर्ण रहा है. इसे मोक्ष नगरी कहा जाता है. किताब में कहा गया है कि यहां हिंदू धर्म के अलग-अलग पंथ थे. यहां जैन तीर्थांकर भी आए.
ह्वेनसांग 7वीं शताब्दी में काशी में आते हैं. वह इसका जिक्र करते हुए कहते हैं कि यहां एक ऐसी मूर्ति है जिसकी उंचाई 100 फीट है और जो जीवंत स्वरूप है.
1033 में महमूद गजनवी का कोषाध्यक्ष काशी पर पहला हमला करता है. कुछ साल बाद एक और हमला होता है.
11वीं सदी में गहदवाल के गोविंदचार्या ने काशी को अपनी राजधानी बनाया. वह वैष्णव संप्रदाय को मानने वाले थे, लेकिन शैव संप्रदाय को भी मान्यता देते थे, उनकी पत्नियां बौद्ध मत को मानती थीं. इन्होंने भी मंदिर के लिए योगदान दिया.
16वीं सदी के मध्य में अकबर के समय में यह मंदिर नए सिरे से बनता है. तब इसका श्रेय नारायण भट्ट को जाता है. नारायण भट्ट ने आशीर्वाद से बारिश कराई, प्रसन्न होकर अकबर ने अनुमति दे दी और टोडरमल के बेटे ने भव्य अष्टमंडप मंदिर बनाया. जो बीच में विश्वेश्वर का गर्भगृह था. 1580 के जमाने का यह मंदिर था. यह मंदिर 80-90 साल ही चला.
22 सितंबर 1755 में विश्वनाथ मंदिर पर एक और हमला होता है. इससे काशी के हिंदू काफी नाराज होते हैं और काफी विरोध प्रदर्शन होता है. कहा जाता है कि फिर मुगल बादशाह औरंगजेब के समय 1669 में मंदिर को तोड़ा गया.
इसके बाद देवी अहिल्याबाई होलकर 1775-1780 के बीच मौजूदा समय के मंदिर को बनवाया.
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