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Mughal Emperor History: अकबर के इस नवरत्न का बेटे सलीम ने क्यों कराया कत्ल? बाप ने मौत तक माफ नहीं किया

एबीपी लाइव   |  26 Sep 2025 07:30 AM (IST)
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बादशाह अकबर का दरबार अपने नवरत्नों के लिए मशहूर था. इनमें बीरबल, तानसेन, राजा मान सिंह, टोडरमल जैसे महान व्यक्तित्व शामिल थे. इन्हीं में से एक थे अबुल फजल इब्न मुबारक, जिन्होंने न केवल अकबर की प्रशंसा पाई बल्कि उसे इतिहास के पन्नों पर अमर करने का काम किया.

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अबुल फजल का परिवार मूल रूप से अरब के हिजाज क्षेत्र से था, जो बाद में सिंध होते हुए भारत आया. अबुल फजल बचपन से ही विद्वान थे और मात्र 20 वर्ष की उम्र में शिक्षक बन गए. उनकी लिखी टिप्पणियां और विचार अकबर तक पहुंचे और यहीं से उनकी किस्मत बदल गई.

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1573 ईस्वी में अबुल फजल अकबर के दरबार से जुड़े. उन्होंने अपनी असाधारण बुद्धिमत्ता और वफादारी से अकबर का विश्वास जीता. वर्ल्ड एटलस की रिपोर्ट के मुताबिक, बादशाह अकबर ने इन्हें 1575 में अपने नवरत्नों में शामिल किया. समय के साथ वे अकबर के सबसे करीबी और प्रधानमंत्री जैसे प्रभावशाली पद तक पहुंच गए. अबुल फजल ने कई सारी किताबें लिखी थी. इनमें से सबसे बड़ी अकबरनामा और आईन-ए-अकबरी जैसी किताबें थी.

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जहांगीर (सलीम) को अबुल फजल शुरू से ही खटकते थे. अकबर और सलीम के बीच जब भी मतभेद होते, अकबर हमेशा अबुल फजल पर भरोसा करता था. यह सलीम को खलता था क्योंकि उसे लगता था कि अबुल फजल उसके रास्ते की सबसे बड़ी बाधा हैं.

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अकबर की उदार नीतियों और दीन-ए-इलाही जैसी सोच का अबुल फजल समर्थन करते थे, जबकि सलीम अधिक परंपरावादी विचार रखता था. 1602 ईस्वी में जब अबुल फजल किसी काम से राज्य से बाहर थे, तब अकबर ने उन्हें वापस बुलाया, लेकिन शहजादा सलीम ने इस अवसर का फायदा उठाया.

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सलीम ने बुंदेला राजा वीरसिंह देव बुंदेला को लालच और शक्ति का आश्वासन देकर अबुल फजल को खत्म करने का आदेश दिया. 12 अगस्त 1602 को अबुल फजल की बेरहमी से हत्या कर दी गई.

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अबुल फजल अकबर के सबसे विश्वस्त साथी थे. उनकी मौत से अकबर गहरे सदमे में चला गया और कहा जाता है कि उसने खुद को लंबे समय तक महल में बंद रखा. अकबर ने सलीम को इस अपराध के लिए मृत्यु तक माफ नहीं किया.

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अबुल फजल की मृत्यु के बाद अकबरनामा को इनायतुल्ला ने पूरा किया और इसे तक़मील-ए-अकबरनामा नाम दिया गया. अबुल फजल केवल एक दरबारी नहीं थे, बल्कि वे इतिहासकार, दार्शनिक और विचारक भी थे. उनकी लिखी किताबें आज भी मुगल काल को समझने का सबसे विश्वसनीय स्रोत मानी जाती हैं. उनकी मौत ने यह दिखा दिया कि सत्ता के खेल में विद्वान भी षड्यंत्र का शिकार हो सकते हैं.

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