प्राचीन भारत की अद्भुत तकनीक: उड़ने वाले रथ से लेकर जंग-रोधी स्तंभ तक! हैरान करने वाला विज्ञान
भारत की पौराणिक कथाएं, मंदिरों की अद्भुत नक्काशी और पवित्र ग्रंथ अविश्वसनीय तकनीकों की कहानियों से भरी पड़ी है. पौराणिक ग्रंथों में उड़ने वाले रथों से लेकर चलती फिरती मूर्तियों तक, ये सभी बातें पौराणिक मशीनें इस बात की ओर इशारा करती हैं कि भारत के विचारकों और निर्माताओं को तकनीक का ज्ञान हमारी सोच से कई गुना ज्यादा रहा होगा. कुछ लोग इसे मिथक मानते हैं, जबकि कुछ इसे इतिहास की विलुप्त हो चुकी वास्तविक आविष्कारों से तुलना करेगा.
प्राचीन ग्रथों में दृष्टि यंत्रों का जिक्र देखने को मिलता है, जो तारों का अध्ययन करने के साथ मंदिरों में प्रकाश दर्शाने के लिए भी इस्तेमाल किए जाने वाले विशेष लेंस या दर्पण का काम करता थे.
दिल्ली का लौह स्तंभ, जो करीब 400 ईस्वी में बनाया गया था. जिसकी ऊंचाई 7 मीटर थी. इसकी खास बात ये है कि, सालों से बारिश रहने के बाद भी इसमें जंग नहीं लगता. लोककथाओं में इसे देवताओं का उपहार बताया गया था. लेकिन असल में ये प्राचीन भारतीय धातु शिल्प का बेहतरीन उदाहरण हैं.
गुजरात के सोमनाथ मंदिर से प्राप्त मध्यकालीन विवरणों में उन गुप्त मशीनों का उल्लेख देखने को मिलता है, जो बगीचों और अनुष्ठानों में पानी पंप करती थीं.
रामायण और महाभारत काल में उड़ने वाले विमानों का जिक्र देखने को मिलता है, जिसे देवताओं या वीर युद्धाओं द्वारा इस्तेमाल किया जाता था. विमानिका शास्त्र ग्रंथ में रावण जैसे पुष्पक विमान बनाने की विधि का वर्णन भी किया गया है, जिसमें अजीबोगरीब सामाग्रियों और और पारे से संचलित वाले इंजन का जिक्र है. भारत के कई मंदिरों की नक्काशी में उड़ने वाली वस्तुओं को भी दर्शाया गया है, जो आज भी रहस्यों से भरा है.
प्राचीन भारत में कुछ ऐसी मूर्तियां भी थी, जो हिल सकती थीं या संगीत बजा सकती थी. मदुरै के मीनाक्षी मंदिर जैसे धार्मिक स्थानों की किंवदंतियां त्योहारों के दौरान सक्रिय होने वाली यांत्रिक दरवाजों और घूमने वाली आकृतियों का उल्लेख देखने को मिलता है. संभावना है कि, इस तकनीक के पीछे गियर या जल प्रणाली द्वारा संचालित होने वाली मशीनरी हो.