अकेले रहना पसंद करने लगा है बच्चा? यह खतरे की घंटी हो सकती है, जानें इसके संकेत
अगर बच्चा बिना वजह कभी बहुत खुश, तो कभी बहुत गुस्सा या चिड़चिड़ा हो जाता है, तो यह अंदरूनी तनाव का संकेत हो सकता है. बच्चे अपनी भावनाएं ठीक से कह नहीं पाते, इसलिए उनका असर व्यवहार में दिखता है.
अगर बच्चा परिवार या दोस्तों के साथ खेलना-कूदना छोड़ दे और ज्यादातर अकेले रहना चाहे, तो यह उदासी, डर या कॉन्फिडेंस की कमी का संकेत हो सकता है. यह माता-पिता से दूरी नहीं, बल्कि मदद की खामोश पुकार हो सकती है.
नींद न आना, डरावने सपने आना या बहुत ज्यादा सोना भी चिंता का संकेत है. बच्चे के मन में डर या उलझन हो सकती है. लंबे समय तक नींद की परेशानी को हल्के में न लें.
अगर बच्चा पहले ठीक पढ़ता था और अब ध्यान नहीं लगा पा रहा या भूलने लगा है, तो इसे आलस्य न समझें. कई बार भावनात्मक तनाव की वजह से पढ़ाई प्रभावित होती है.
बच्चे जब अपनी भावनाएं व्यक्त नहीं कर पाते, तो वे गुस्से, चिल्लाने या मारपीट के ज़रिये प्रतिक्रिया देते हैं. सिर्फ डांटना काफी नहीं, पहले कारण समझना जरूरी है.
अगर डॉक्टर के अनुसार कोई शारीरिक वजह नहीं है, फिर भी बच्चा बार-बार दर्द की शिकायत करता है, तो यह मानसिक तनाव का संकेत हो सकता है. बच्चे कई बार भावनाओं को शरीर के जरिये दिखाते हैं.
अगर बच्चा हर बात पर घबरा जाता है, असफलता या अकेले होने से डरता है, तो यह भावनात्मक असुरक्षा दर्शाता है. समय पर सहारा न मिले तो चिंता बढ़ सकती है.
अगर बच्चा उन खेलों या कामों में मजा नहीं ले रहा, जिन्हें वह पहले बहुत पसंद करता था, तो यह उदासी या भावनात्मक थकान का संकेत है.
अगर बच्चा हर काम पर पूछे कि “मैं ठीक कर रहा हूं ना?” तो यह कम आत्मविश्वास की निशानी हो सकती है. उसे यह एहसास दिलाना जरूरी है कि वह खास और जरूरी है.
अगर बच्चा अपनी भावनाओं पर बात नहीं करना चाहता या सवाल पूछने पर चुप हो जाता है, तो इसका मतलब यह नहीं कि उसे मदद नहीं चाहिए. उसे बस सुरक्षित और शांत माहौल चाहिए, जहां वह धीरे-धीरे खुल सके.