जरूरत से ज्यादा दवा लेते हैं भारत के बुजुर्ग, मेडिसिन की खपत को लेकर हुआ बड़ा खुलासा
उनके अध्ययन में पाया गया कि छह शहरों में लिए गए 600 लोगों में से 173 (28.8 प्रतिशत) ने कम से कम एक संभावित अनुपयुक्त दवा (पीआईएम) ली थी, जिसका नैदानिक औचित्य नहीं था. जिसे आवश्यक अवधि से अधिक समय तक लिया जा रहा था या जो दोहरा उपचार दर्शाती थी.
सबसे आम पीआईएम में बेंजोडायजेपाइन नामक शामक दवाओं का लंबे समय तक उपयोग, एंटी-एसिडिटी दवाओं का अनुचित उपयोग और गैस्ट्रोप्रोटेक्शन के बिना गैर-स्टेरॉयडल एंटी-इंफ्लेमेटरी दवाओं का उपयोग शामिल है. पीआईएम पर तीन में से एक मरीज डुप्लिकेट थेरेपी पर था, जो एक ही प्रभाव वाली कम से कम दो दवाएं ले रहा था.
शोधकर्ताओं ने कहा कि निष्कर्षों से क्रोनिक स्वास्थ्य विकारों वाले रोगियों के लिए व्यक्तिगत नुस्खों के लिए विशेष प्रयासों की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है. ताकि दुष्प्रभावों के जोखिम को कम किया जा सके और डॉक्टरों और रोगियों दोनों के बीच दवा-दवा परस्पर क्रियाओं के बारे में जागरूकता बढ़ाई जा सके.
अपने अध्ययन के लिए, कलकत्ता के इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च सेंटर फॉर एजिंग एंड मेंटल हेल्थ के एक शोध विद्वान सैबल दास और उनके सहयोगियों ने प्रत्येक शहर से 60 वर्ष से अधिक आयु के 100 लोगों का नमूना लिया, और उनके द्वारा ली गई दवाओं, चाहे वे निर्धारित हों या स्वयं ली गई हों का विश्लेषण किया.
दवाओं की संख्या जितनी अधिक होगी, दवा-दवा परस्पर क्रियाओं की संभावना उतनी ही अधिक होगी और उचित दवाएँ सुनिश्चित करने की आवश्यकता भी उतनी ही अधिक होगी.यह चिकित्सा पद्धति का एक ऐसा क्षेत्र है जिस पर उतना ध्यान नहीं दिया गया है जितना दिया जाना चाहिए.
शोधकर्ताओं ने यह भी पाया है कि सैंपल किए गए बुजुर्गों में से 122 (20 प्रतिशत) में कम से कम एक संभावित प्रिस्क्रिप्शन चूक (पीपीओ) थी, एक दवा जो आवश्यक थी लेकिन नुस्खे में गायब थी. कुछ सामान्य पीपीओ में मधुमेह और अन्य हृदय संबंधी जोखिम कारकों वाले रोगियों के लिए एंटी-क्लॉटिंग थेरेपी, प्रलेखित कोरोनरी धमनी रोग वाले व्यक्तियों के लिए एस्पिरिन या क्लोपिडोग्रेल, या ऑस्टियोआर्थराइटिस वाले लोगों के लिए कैल्शियम या विटामिन डी शामिल थे.