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प्रोस्टेट कैंसर और नींद की समस्या: जानें पुरुषों में रातभर जागने के प्रमुख कारण

एबीपी लाइव   |  23 Dec 2025 09:21 PM (IST)
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प्रोस्टेट कैंसर की वृद्धि मुख्य रूप से पुरुष हार्मोन टेस्टोस्टेरोन पर निर्भर करती है. हार्मोन थेरेपी (ADT) शरीर में टेस्टोस्टेरोन का स्तर कम करती है. इससे ट्यूमर की वृद्धि धीमी होती है, लेकिन थेरेपी के कारण मरीजों को हॉट फ्लैश, रात में पसीना, थकान और मूड में बदलाव जैसी समस्याएं होती हैं. ये सभी लक्षण नींद में बाधा डालते हैं.

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प्रोस्टेट कैंसर के मरीज अक्सर नींद की समस्याओं का सामना करते हैं. जैसे सोने में कठिनाई (अनिद्रा), बार-बार नींद खुलना, नींद की गुणवत्ता खराब होना, नींद का कुल समय कम होना, नींद की दवा बंद करने पर सपने या बुरे सपने अधिक आना और यूरिन की जलन और अन्य असुविधाएं.

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नींद संबंधी समस्याएं कई कारणों से होती हैं. जैसे प्रोस्टेट कैंसर अधिकतर बुजुर्गों में होता है. उम्र बढ़ने के साथ नींद में प्राकृतिक बदलाव आते हैं. ADT के कारण टेस्टोस्टेरोन में कमी और हॉट फ्लैश जैसी समस्याएं नींद में खलल डालती हैं. कैंसर और उसके इलाज से संबंधित दर्द, मूत्र संबंधी लक्षण और चिंता नींद की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं.

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नींद की कमी शरीर की रिकवरी और शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती है. लंबे समय तक नींद न लेने से हृदय रोग, मधुमेह और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी विकारों का खतरा बढ़ जाता है. प्रोस्टेट कैंसर के मरीज पहले से ही इन समस्याओं के लिए संवेदनशील होते हैं, इसलिए नींद की कमी उनकी जीवन गुणवत्ता को और घटा सकती है.

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नींद संबंधी समस्याओं पर शोध सीमित हैं. अधिकांश अध्ययन पर आधारित हैं, जो मरीज की व्यक्तिगत धारणा पर निर्भर होते हैं. बहुत कम अध्ययन वस्तुनिष्ठ उपकरणों जैसे स्लीप ट्रैकर या नींद प्रयोगशालाओं का यूज करते हैं. हार्मोन थेरेपी शुरू करने से पहले नींद का आधारभूत मूल्यांकन अक्सर नहीं किया जाता है.

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प्रोस्टेट कैंसर के मरीजों के लिए नींद को उपचार का जरूरी हिस्सा मानना जरूरी है. इसके लिए कदम उठाए जा सकते हैं. जैसे नींद शिक्षा और जागरूकता, संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा (CBT), हॉट फ्लैश और मूत्र संबंधी लक्षणों का नियंत्रण, नियमित परामर्श और निगरानी और बेहतर नींद से रोगियों की एनर्जी, मूड और जीवन की गुणवत्ता में सुधार होता है.

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