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Mobile Addiction: फोन से जरा सी भी दूरी नहीं हो रही बर्दाश्त? हो जाएं सावधान, कहीं यह Nomophobia तो नहीं

एबीपी लाइव   |  26 Apr 2024 01:44 PM (IST)
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स्मार्टफोन आजकल हमारी लाइफ का अहम हिस्सा बन गए हैं. हर छोटे-बड़े काम के लिए हम इसी पर डिपेंड होते जा रहे हैं. आलम यह है कि एक पल भी फोन से दूर रह पाना कठिन हो जाता है. मोबाइल फोन पास न रहने पर एंग्जाइटी तक होने लगती है. इस तरह की समस्या को हल्के में नहीं लेना चाहिए. मेडिकल टर्म में इसे नोमोफोबिया (Nomophobia) कहा गया है, जो एक तरह का मेंटल डिसऑर्डर है. आइए जानते हैं क्या है Nomophobia, और इसके क्या हैं नुकसान...

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नोमोफोबिया यानी नो मोबाइल फोन फोबिया तब होता है, जब किसी इंसान को फोन से दूर रहने की वजह से डर या चिंता होने लगता है. इससे वे उत्तेजित होने लगते हैं, सांस लेने में बदलाव हो जाता है और दूसरे कई लक्षण नजर आने लग सकते हैं. इस कंडीशन में सोचने-समझने और किसी समस्या से डील करने का तरीका भी प्रभावित होता है.

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जर्नल ऑफ फैमिली मेडिसिन एंड प्राइमरी केयर में 2019 में एक आर्टिकल पब्लिश हुआ. जिसमें बताया गया कि नोमोफोबिया के पहले किसी शख्स में कई साइकोलॉजिकल कंडीशन जैसे-चिंता, तनाव बढ़ने लगता है.

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हेल्थ एक्सपर्ट्स के मुताबिक, चिंता-तनाव के अलावा नोमोफोबिया के कई और लक्षण हो सकते हैं. फोन से थोड़ा सा दूर होने पर भी शरीर में कंपन, पसीना, घबराहट होने लगती है. कई बार तोटैकीकार्डिया यानी दिल के धड़कनों का असामान्य हो जाना भी हो सकता है.

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फोन से दूर होने पर होने वाली घबराहट को लेकर 2020 में एक स्टडी की गई. जिसमें शोधकर्ताओं ने पाया कि स्मार्टफोन से जुड़े कंपल्शन इस डिसऑर्डर को जन्म दे सकते हैं. इसके अलावा इंटरपर्सनल सेंसटिबिटी भी इसका कारण हो सकता है, जिसमें इंसान अन्य डिसऑर्डर को दूसरों से शेयर नहीं कर पाता है.

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नोमोफोबिया को अब तक ऑफिशियली मेंटल डिसऑ्डर नहीं माना गया है, इसलिए इसका कोई इलाज भी मौजूद नहीं है. हालांकि, कुछ तरह की थेरेपी और काउंसिलिंग से इस फोबिया को दूर किया जा सकात है. इसके लक्षणों सुधार भी हो सकती है. इसके लक्षण दिखने पर तुरंत मनोवैज्ञानिक के पास जाना चाहिए.

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