डायबिटीज मरीज खुश हो जाएं! 10 रुपए से भी सस्ती हो सकती है शुगर की दवा, जानें कब से
डायबिटीज एक लाइफस्टाइल से जुड़ी बीमारी है. इसकी वजह से ब्लड में शुगर लेवल (Sugar Level) बढ़ता है. शरीर में खून की सबसे ज्यादा जरूरत हार्ट, ब्रेन और किडनी को होती है, इसलिए डायबिटीज होने पर सबसे ज्यादा नुकसान भी इन्हीं अंगों को उठाना पड़ता है
दुनियाभर में डायबिटीज के मरीज (Diabetes Patients) तेजी से बढ़ रहे हैं. इनमें भारत सबसे आगे है. इंटरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन (IDF) के अनुसार, भारत में 10.1 करोड़ लोग डायबिटीज की चपेट में हैं. जिनमें से अधिकतर लोग अपनी दवा का इलाज अपनी ही जेब से कर रहे हैं.
टाइप-2 डायबिटीज (Type-2 Diabetes) में एम्पाग्लिफ्लोजिन (Empagliflozin) नाम की दवा का सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता है. लेकिन इस दवा को बनाने वाली जर्मन कंपनी बोहरिंगर इंगेलहाइम (Boehringer Ingelheim) का पेटेंट 11 मार्च 2025 को खत्म हो रहा है. इसके बाद भारतीय घरेलू दवा कंपनियां इसे अपने ब्रांड के तहत लॉन्च करेंगी.
इनमें मैनकाइंड फार्मा, टॉरेंट, अल्केम, डॉ. रेड्डी और ल्यूपिन जैसी प्रमुख दवा बनाने वाली कंपनियां शामिल हैं. सबसे बड़ी बात कि मैनकाइंड फार्मा इस दवा को जर्मन कंपनी की तुलना में 90% तक कम कीमत पर बेचने की तैयारी कर रही है. ऐसा हुआ तो 60 रुपए वाली दवा सिर्फ 9 रुपए में आएगी.
हेल्थ एक्सपर्ट्स केअनुसार, डायबिटीज, हार्ट और किडनी डिजीज के इलाज में एम्पाग्लिफ्लोजिन का इस्तेमाल किया जाता है. देश में 10.1 करोड़ से ज्यादा लोग डायबिटीक हैं. जिनमें से ज्यादातर लोग अपनी जेब से ही दवा का खर्च उठाते हैं. ऐसे में दवा की कीमत घटने से इन्हें बड़ी राहत मिलेगी.
TOI की रिपोर्ट के अनुसार, टॉरेंट फार्मास्युटिकल्स पहले से ही बोहरिंगर इंगेलहाइम की 3 ब्रांडेड एम्पाग्लिफ्लोज़िन दवाओं का एक्यूजिशन कर चुकी है. मैनकाइंड फार्मा के अनुसार, हाई क्वालिटी वाले रॉ मैटेरियल, जो USFDA प्रमाणित है. इसका इस्तेमाल और अपने खुद के एक्टिव फार्मास्युटिकल्स इनग्रेडिएंट बनाने से कॉस्ट को और कम करने में सक्षम हुए हैं. चूंकि देश में शुगर पेशेंट के इलाज का खर्च ज्यादा है. मरीज अपने इलाज का खर्च खुद उठाते हैं. ऐसे में एम्पाग्लिफ्लोज़िन का सस्ता होना डायबिटीज मरीजों के लिए काफी अच्छा हो सकता है.