Low Carb Diet Effects: कार्बोहाइड्रेट्स खाना छोड़ देंगे तो शरीर पर कितना पड़ेगा असर? दिक्कत होने से पहले दुरुस्त कर लें यह गलती
कार्बोहाइड्रेट शरीर का सबसे आसान और पसंदीदा ऊर्जा सोर्स हैं. यह सिर्फ चावल, रोटी और आलू में ही नहीं, बल्कि फलों, सब्जियों, दालों, दूध और अनाज में भी पाए जाते हैं. ग्लूकोज, जो कार्ब्स से बनता है वह लगभग हर सेल की प्राथमिक जरूरत है, खासकर दिमाग और रेल ब्लड सेल्स की.
जैसे ही कार्ब्स कम होते हैं, शरीर अपने स्टोर किए हुए ग्लाइकोजन को इस्तेमाल करने लगता है. ग्लाइकोजन पानी के साथ बंधा होता है, इसलिए इसके खत्म होते ही वजन तेजी से गिरता दिखाई देता है. हालांकि लंबे समय में यह अंतर कम हो जाता है, क्योंकि वॉटर लॉस रुक जाते हैं.
कार्ब कम होते ही शरीर ऊर्जा के लिए फैट पर निर्भर होने लगता है और कीटोन बनने शुरू हो जाते हैं. यह प्रक्रिया तेजी से फैट जलाने में मदद करती है और भूख भी कुछ कम कर सकती है. लेकिन लंबे समय तक सख्त लो-कार्ब डाइट पर रहने से पोषक तत्वों की कमी की संभावना भी बढ़ जाती है.
कार्ब्स हटाने का सबसे बड़ा असर पाचन पर पड़ता है, क्योंकि फाइबर भी कम हो जाता है. फाइबर की कमी से कब्ज, पेट फूलना और आंतों के माइक्रोबायोम में गड़बड़ी हो सकती है. कुछ स्टडीज बताती हैं कि लंबे समय तक कार्ब कम रखने से अच्छी बैक्टीरिया की विविधता भी घटती है.
कार्ब कम होने पर कई लोगों में एनर्जी लेवल गिर जाता है. शुरुआत के दिनों में थकान, चिड़चिड़ापन, ध्यान भटकना या ब्रेन फॉग की शिकायत आम होती है. दिमाग को ग्लूकोज चाहिए और इसकी कमी से कुछ लोगों में हल्का हाइपोग्लाइसीमिया तक हो सकता है.
हर किसी के लिए लो-कार्ब डाइट सही नहीं होती. किडनी की दिक्कत वाले लोगों में ज्यादा प्रोटीन का लोड बढ़ सकता है. वहीं, लिवर संबंधी समस्याओं या हाई-इंटेंसिटी ट्रेनिंग करने वाले एथलीटों के लिए कार्ब कम करना परफॉर्मेंस को सीधे प्रभावित कर सकता है.
कार्ब्स पूरी तरह छोड़ने से पहले यह समझना जरूरी है कि शरीर की एनर्जी, डाइजेशन और दिमाग तीनों ही इससे जुड़े हुए हैं. किसी भी बड़े बदलाव से पहले अपने स्वास्थ्य, जरूरतों और मेडिकल कंडीशन को ध्यान में रखना सबसे सही तरीका है. यह जानकारी केवल जागरूकता के लिए है, किसी भी डाइट को अपनाने से पहले एक्सपर्ट से सलाह लेना जरूरी है.