रेलवे स्टेशन पर पानी की टंकी क्यों बनाई जाती थी, अब पुरानी टंकियों को तोड़ने का क्या नियम है?
पश्चिम बंगाल के वर्धमान रेलवे स्टेशन पर जो पानी की टंकी गिरी वो 133 साल पुरानी थी. चलिए अब जानते हैं कि आखिर रेलवे स्टेशनों पर पानी की टंकी क्यों बनाई जाती थी और अगर कोई पुरानी पानी की टंकी गिरानी हो तो उसके लिए नियम क्या है.
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View In Appअब बात करते हैं कि आखिर रेलवे स्टेशनों पर पानी की टंकी क्यों बनाई जाती थी. दरअसल, ऐसा इसलिए था क्योंकि पहले के समय में रेलवे स्टेशन बस्तियों से थोड़ी दूरी पर बनाए जाते थे और वहां पानी की आपूर्ती सही से होती रहे इसलिए वहां पानी की टंकी बनाई जाती थी.
इसके अलावा ट्रेन में मौजूद सौचालयों में पानी भरने के लिए भी रेलवे स्टेशनों के नजदीक पानी की टंकी बनाई जाती थी. हालांकि, अब ये काम क्विक वाटरिंग सिस्टम के जरिए होने लगा है.
क्विक वाटरिंग सिस्टम को आप आज हर बड़े जंक्शन पर देख पाएंगे. दरअसल, रेल की पटरियों के किनारे एक पाइपलाइन लगी होती है, जिसमें से फोर्स में पानी निकलता है और ट्रेन के हर कोच में मौजू बाथरूप की टंकी को फुल कर देता है.
सबसे बड़ी बात कि अब इस काम में महज़ 5 से 10 मिनट का समय लगता है. यानी पांच से दस मिनट में कोच में मौजूद बाथरूम की टंकी भर दी जाती है.
वहीं पुरानी पानी की टंकी को तोड़ने के नियम की बात करें तो इसके लिए आपको पहले नगर निगम को एक पत्र लिखना होता है और बताना होता है कि इस टंकी को तोड़ने के पीछे की वजह क्या है. फिर नगर निगम पूरी सुरक्षा के साथ पानी की टंकी ध्वस्त करता है.
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