रेलवे स्टेशन पर क्यों नहीं दिखती दवाइयों की दुकान, क्या है इसकी असली वजह?
असल में, दवाओं की बिक्री सिर्फ सामान बेचने जैसा आसान काम नहीं है. इसके लिए कड़े कानूनी नियम और शर्तें होती हैं. दवाएं हमेशा सही तापमान और सुरक्षित जगह पर रखी जानी चाहिए, साथ ही हर मेडिकल स्टोर पर एक लाइसेंसधारी फार्मासिस्ट का मौजूद रहना जरूरी होता है.
अब ऐसे में रेलवे स्टेशन जैसी भीड़भाड़ वाली जगह पर इन नियमों का पालन करना आसान नहीं होता है. नकली दवाओं की रोकथाम और उनके दुरुपयोग को रोकना भी यहां बड़ी चुनौती बन जाता है.
एक और कारण है लाभ. स्टेशन पर उपलब्ध अन्य सामान बाजार से महंगे मिलते हैं, क्योंकि दुकान का किराया और संचालन लागत ज्यादा होती है. ऐसे में दवाओं की कीमत बढ़ाना कानूनी और नैतिक रूप से संभव नहीं है.
इसके अलावा यात्रियों का यह व्यवहार भी देखा गया है कि वे सफर से पहले ही अपनी जरूरी दवाएं खरीदकर साथ रखते हैं.
ऐसे में स्टेशन पर मेडिकल स्टोर चलाना कई बार घाटे का सौदा साबित हो सकता है. हालांकि, इसका यह मतलब नहीं कि रेलवे यात्रियों की सेहत और सुरक्षा पर ध्यान नहीं देता है.
लगभग हर बड़े स्टेशन पर फर्स्ट-एड रूम या मेडिकल पोस्ट मौजूद रहते हैं. यहां प्रशिक्षित कर्मचारी और डॉक्टर उपलब्ध होते हैं, जो आपातकालीन स्थितियों में यात्रियों को तुरंत प्राथमिक उपचार प्रदान करते हैं.
गंभीर मामलों में नजदीकी अस्पताल से भी संपर्क किया जाता है. रेलवे प्रशासन का प्राथमिक काम ट्रेन संचालन को सुरक्षित और समय पर बनाए रखना है. अगर स्टेशन पर दवा दुकानों को खोलने की अनुमति दी जाए तो यह अतिरिक्त प्रशासनिक और सुरक्षा जिम्मेदारी बढ़ा देगा.