✕
  • होम
  • इंडिया
  • विश्व
  • उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड
  • बिहार
  • दिल्ली NCR
  • महाराष्ट्र
  • राजस्थान
  • मध्य प्रदेश
  • हरियाणा
  • पंजाब
  • झारखंड
  • गुजरात
  • छत्तीसगढ़
  • हिमाचल प्रदेश
  • जम्मू और कश्मीर
  • बॉलीवुड
  • ओटीटी
  • टेलीविजन
  • तमिल सिनेमा
  • भोजपुरी सिनेमा
  • मूवी रिव्यू
  • रीजनल सिनेमा
  • क्रिकेट
  • आईपीएल
  • कबड्डी
  • हॉकी
  • WWE
  • ओलिंपिक
  • धर्म
  • राशिफल
  • अंक ज्योतिष
  • वास्तु शास्त्र
  • ग्रह गोचर
  • एस्ट्रो स्पेशल
  • बिजनेस
  • हेल्थ
  • रिलेशनशिप
  • ट्रैवल
  • फ़ूड
  • पैरेंटिंग
  • फैशन
  • होम टिप्स
  • GK
  • टेक
  • ऑटो
  • ट्रेंडिंग
  • शिक्षा

क्या दारू के साथ जरूरी है चखना, भारत में यह कब से बना शराब का साथी?

एबीपी लाइव   |  02 Dec 2025 08:31 AM (IST)
1

सबसे पहले समझिए कि चखना क्यों इतना महत्वपूर्ण माना जाता है. शरीर अल्कोहल को सीधे पेट की दीवारों से तेजी से सोख लेता है. अगर पेट खाली हो तो शराब बिजली की तरह खून में फैलती है और नशा असंतुलित रूप से चढ़ जाता है.

Continues below advertisement
2

वैज्ञानिक रिसर्च कहती है कि खाना पेट में मौजूद हो तो अल्कोहल का अवशोषण 70-75% तक धीमा हो जाता है. यही वजह है कि दुनिया भर में डॉक्टर भी यही सलाह देते हैं कि पीना हो तो खाली पेट कभी नहीं पीना.

Continues below advertisement
3

अब बात करते हैं उस सफर की जिसने चखना को भारत में ‘शराब का साथी’ बना दिया. ब्रिटिश शासन में शराब एक बड़ा राजस्व माध्यम था, इसलिए खाने-पीने के साथ कोई सांस्कृतिक जोड़ नहीं था. लेकिन 20वीं सदी की शुरुआत में बॉम्बे के मिल इलाकों में बड़ी संख्या में मजदूर रोज शराब का सहारा लेने लगे.

4

यह आदत समाज के लिए बोझ न बने, इसलिए कई राज्यों ने अमेरिका की तरह नियम बनाए कि शराब के साथ खाना अनिवार्य होगा. तब भारत में ठेकों ने सबसे सस्ता और जल्दी मिलने वाला खाना सामने परोसना शुरू कर दिया, जैसे- उबले चने, उबले अंडे, मूंगफली, नमकीन.

5

गुणवत्ता की बात करें तो ये खाना सिर्फ औपचारिकता निभाने भर का था. अखबारों में शिकायतें आती रहती थीं कि ठेकों पर घटिया स्तर का खाना दिया जाता है, लेकिन तब के माहौल में किसी के पास इसे रोकने की ताकत नहीं थी.

6

आजादी के बाद 1950 के दशक में शराबबंदी का दौर आया, लेकिन बंदी ने शराब की दुकानों को भूमिगत कर दिया. दिलचस्प बात ये है कि उन दिनों बंबई में कोई शराब की दुकान ढूंढनी हो तो उसका सुराग खाने वालों से मिलता था. जहां सड़क किनारे चने, अंडे या चटनी बेचने वाले ज्यादा दिख जाएं, समझ लीजिए पास में एक गुप्त ठेका है.

7

फिर आया 70 का दशक, जब शहरों में बार और रेस्टोरेंट संस्कृति फैलने लगी. बढ़ती प्रतिस्पर्धा में कई बार मुफ्त चने, पापड़ या चटनी देने लगे, ताकि ग्राहक ज्यादा देर तक रहे और ज्यादा ऑर्डर करें. यही प्रैक्टिस धीरे-धीरे ‘चखना सर्विस’ में बदल गई. 90 के दशक आते-आते चखना एक इंडस्ट्री बन चुका था. ग्रिल्ड चिकन, चाइनीज स्नैक्स, मसाला पीनट, फ्राई मछली- सबने अपनी-अपनी जगह बना ली. अब यह सिर्फ परंपरा नहीं रहा बल्कि बिजनेस मॉडल बन गया. ड्रिंक के साथ स्नैक की जोड़ी आज तक उतनी ही स्ट्रॉन्ग है जितनी पहली बार बनी थी.

  • हिंदी न्यूज़
  • फोटो गैलरी
  • जनरल नॉलेज
  • क्या दारू के साथ जरूरी है चखना, भारत में यह कब से बना शराब का साथी?
Continues below advertisement
About us | Advertisement| Privacy policy
© Copyright@2025.ABP Network Private Limited. All rights reserved.