भूकंप आने के बाद क्यों बढ़ जाता है सुनामी का खतरा, आखिर धरती के अंदर ऐसा क्या होता है?
पृथ्वी जब कांपती है, तो उसका असर आसमान से लेकर समुद्र की गहराइयों तक पहुंच जाता है. भूकंप आने के बाद सुनामी का खतरा क्यों बढ़ जाता है, यह सवाल अक्सर तब उठता है जब किसी समुद्री तट पर लहरों का रौद्र रूप तबाही मचा देता है. दरअसल, इसका कारण धरती के नीचे मौजूद टेक्टॉनिक प्लेटों की हलचल है, जो पृथ्वी के स्थायित्व की असली कुंजी भी हैं और उसकी सबसे बड़ी कमजोरी भी.
धरती के नीचे कई विशाल प्लेटें होती हैं, जिन्हें टेक्टॉनिक प्लेट्स कहा जाता है. ये प्लेटें लगातार हलचल करती रहती हैं, लेकिन जब दो प्लेटें एक-दूसरे से टकराती हैं या एक प्लेट दूसरी के नीचे धंस जाती है, तो भूकंप पैदा होता है. अगर यह टक्कर समुद्र के नीचे होती है, तो यह न सिर्फ जमीन बल्कि पूरे समुद्र तल को भी हिला देती है.
अब सोचिए, समुद्र तल का एक हिस्सा अगर अचानक ऊपर उठ जाए या नीचे धंस जाए, तो वहां मौजूद अरबों टन पानी का क्या होगा? यही पानी अचानक एक दिशा में धकेला जाता है और यह धक्का लहरों के रूप में फैलने लगता है.
शुरुआत में ये लहरें समुद्र में बहुत धीमी लगती हैं, लेकिन जैसे-जैसे ये तट की ओर बढ़ती हैं, पानी की गहराई कम होती जाती है और लहरों की ऊंचाई कई मीटर तक पहुंच जाती है. यही लहरें सुनामी कहलाती हैं.
भूकंप और सुनामी का यह रिश्ता वर्षों से वैज्ञानिकों के अध्ययन का विषय रहा है. 2004 की हिंद महासागर सुनामी इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जब इंडोनेशिया के तट के पास 9.1 तीव्रता का भूकंप आया और देखते ही देखते 14 देशों में तबाही मच गई. करीब 2.3 लाख लोगों की जान गई और हजारों किलोमीटर दूर तक लहरों ने तटों को तबाह कर दिया.
भूकंप के अलावा पनडुब्बी भूस्खलन (Submarine Landslides) और ज्वालामुखी विस्फोट भी सुनामी को जन्म दे सकते हैं. जब समुद्र तल पर भूस्खलन होता है, तो पानी का संतुलन बिगड़ता है और वह बड़ी लहरों का रूप ले लेता है. इसी तरह, समुद्र के नीचे ज्वालामुखी फटने से निकली ऊर्जा भी पानी को विस्थापित कर देती है.
फिर भी, सबसे आम कारण समुद्र तल में आए भूकंप ही होते हैं. वैज्ञानिक आज भी सुनामी की भविष्यवाणी पूरी तरह सटीक नहीं कर पाते, लेकिन कई देश अब Tsunami Early Warning System पर काम कर रहे हैं. भारत में भी भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र (INCOIS) इस दिशा में अहम भूमिका निभा रहा है.