इन देशों के पास है दुनिया के हर हिस्से में तबाही मचाने वाली मिसाइल, यूं ही नहीं कहे जाते सुपरपॉवर
आज के जमाने में जब बात सुपरपावर कहलाने की आती है, तो सिर्फ बड़ी अर्थव्यवस्था या बड़ी सेना ही नहीं, बल्कि ऐसी क्षमता मायने रखती है जिससे देश दुनिया के किसी भी हिस्से को निशाना बना सके.
इस क्षमता का केंद्र बिंदु लॉन्ग-रेंज बैलिस्टिक और सब-सर्फेस-लॉन्च मिसाइलें हैं. जिन देशों के पास ये हैं, उनके पास रणनीतिक दांव खेलने की ताकत भी है.
सबसे पहले बात उन देशों की जो वास्तविक अंतरमहाद्वीपीय मार की क्षमता रखते हैं, जैसे कि संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस, यूनाइटेड किंगडम के साथ-साथ भारत, उत्तर कोरिया और इजराइल जैसे देशों के पास भी लंबी दूरी की मिसाइल प्लेटफॉर्म मौजूद हैं या विकास के चरण में हैं.
ये देशों की मिसाइल क्षमताएं उनके वैश्विक प्रभाव और सुरक्षा नीति की रीढ़ हैं. रोसीया और अमेरिका आज भी सबसे बड़े खिलाड़ी माने जाते हैं. इनके पास साइलो-बेस्ड, मोबाइल लॉन्चर्स और पनडुब्बी-लॉन्च सिस्टम (SLBM) दोनों हैं, जो दूरदराज के लक्ष्यों तक परमाणु वारहेड पहुंचाने में सक्षम हैं.
चीन ने भी अपने ICBM नेटवर्क और मोबाइल मिसाइलों का विस्तार तेज कर दिया है, जिससे अब वह भी वैश्विक-रेंज क्षमताओं में अग्रणी बनता जा रहा है. SIPRI व अन्य रिपोर्ट्स से पता चलता है कि इन तीनों देशों की आधुनिकीकरण परियोजनाएं 2020s में काफी तेज हुई हैं.
कुछ मशहूर मिसाइलें इस तसवीर को और स्पष्ट करती हैं. अमेरिका-यूके के Trident II (D5) SLBM पनडुब्बियों से दागे जाते हैं और महाद्वीपीय रेंज में भारी प्रभाव रखते हैं. रूस का नया RS-28 Sarmat और चीन का DF-41 लंबे रेंज और मल्टी-वारहेड क्षमता के कारण बहुत ध्यान में हैं. ये मिसाइलें एक साथ कई निशानों को हिट करने में सक्षम होने के दावे के साथ विकसित की जा रही हैं.
छोटे और मध्यम शक्तियों की भी भूमिका बदल रही है. भारत ने Agni-V जैसी मिसाइलों के जरिए इंटरकॉन्टिनेंटल-रेंज क्षमता हासिल कर ली है और वो क्षेत्रीय तथा रणनीतिक सन्तुलन में अपनी जगह बनाने लगा है. वहीं उत्तर कोरिया ने भी हाल के परीक्षणों में ठोस-ईंधन इंजन और लंबी दूरी के डिजाइन पर काम तेज किया है.