वैज्ञानिक 1 जनवरी को साल का 0 पॉइंट क्यों मानते हैं? जानिए इसके पीछे की वजह
1 जनवरी को 0 पॉइंट माने जाने के पीछे कुछ प्राचीन कारण भी हैं. प्राचीन समय में रोम के लोग जेनस नाम के देवता की पूजा करते थे. जेनस को शुरुआत और अंत का देवता माना जाता था. लोगों का मानना था कि जेनस के दो चेहरे होते हैं, एक पीछे देखने वाला और दूसरा आगे देखने वाला. इन्हीं देवता जेनस के नाम पर जनवरी महीने का नाम पड़ा.
इसके पीछे एक और अहम कारण है. साल 1582 में पोप ग्रेगरी XIII ने पुराने कैलेंडरों की गलतियों को सुधारते हुए ग्रेगोरियन कैलेंडर की शुरुआत की. उस समय अलग-अलग देशों में अलग-अलग कैलेंडर चलते थे और लोग अलग तारीखों पर नया साल मनाते थे.
अलग-अलग देशों और महाद्वीपों में अलग कैलेंडर होने की वजह से काफी अव्यवस्था फैल रही थी. अंतरराष्ट्रीय व्यापार, यात्रा और आपसी संवाद में लोगों को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता था. इसलिए पूरी दुनिया में एक ही कैलेंडर लागू करने की जरूरत महसूस की गई.
पोप ग्रेगरी XIII द्वारा शुरू किए गए ग्रेगोरियन कैलेंडर को धीरे-धीरे पूरी दुनिया ने अपनाया. इससे व्यापार और संचार में आसानी हुई और 1 जनवरी को आधिकारिक रूप से साल का पहला दिन घोषित कर दिया गया.
वैज्ञानिकों के अनुसार, शून्य किसी भी गणना की शुरुआत से पहले आता है. यह एक आरंभ बिंदु होता है. इसलिए कैलेंडर में 1 जनवरी को शुरुआत का बिंदु या 0 पॉइंट कहा जाता है, क्योंकि इसके बाद ही बाकी की तारीखों की गिनती शुरू होती है.
वैज्ञानिकों के अनुसार, पृथ्वी को सूर्य का एक चक्कर लगाने में लगभग 365.25 दिन लगते हैं. अगर हमारे पास साल की शुरुआत का कोई निश्चित 0 पॉइंट नहीं होता, तो हर साल मौसम और तारीखों का तालमेल बिगड़ सकता था.
वैज्ञानिकों ने 1 जनवरी का उपयोग शुरुआती बिंदु के रूप में किया, ताकि लोगों को यह स्पष्ट पता चल सके कि एक नया साल शुरू हो चुका है और जब यह साल खत्म होगा, तो उसके बाद एक और नया साल आएगा.