Alcohol Effects: गाड़ी तेरा भाई चलाएगा... दारू पीने के बाद क्यों बढ़ जाता है कॉन्फिडेंस, शरीर में कैसे होता है केमिकल लोचा?
दरअसल शराब दिमाग के केमिकल मैसेंजर न्यूरोट्रांसमीटर के लेवल को बदलना शुरू कर देती है. यह इम्बैलेंस भावना, व्यवहार, रिएक्शन टाइम और जजमेंट पर असर डालते हैं. जब यह सिग्नल बिगड़ जाते हैं तो लोग कमजोर होने पर भी ज्यादा कॉन्फिडेंट महसूस करते हैं.
शराब पीने का पहला स्टेज दिमाग के रिवॉर्ड सेंटर में अच्छा महसूस कराने वाले केमिकल डोपामाइन के बढ़ने से जुड़ा होता है. डोपामाइन बढ़ने से इंसान को काफी ज्यादा एनर्जेटिक और शक्तिशाली महसूस होता है. दरअसल यह कॉन्फिडेंस असली नहीं होता बल्कि न्यूरोकेमिकल होता है.
शराब प्रीफ्रंटल कोर्टेक्स में एक्टिविटी को काफी कम कर देता है जो दिमाग का वह हिस्सा होता है जिसमें फैसला लेने, लॉजिक प्लैनिंग और सेल्फ कंट्रोल की जिम्मेदारी होती है.
शराब GABA के असर को बढ़ाती है. यह एक इनहिबिटरी न्यूरोट्रांसमीटर है जो दिमाग को शांत करता है. जैसे-जैसे इसकी एक्टिविटी बढ़ने लगती है चिंता और डर कम हो जाते हैं.
नशा दिमाग की खतरे का आकलन करने की क्षमता को काफी कम कर देता है. आमतौर पर जो खतरे तुरंत सावधानी बरतने के लिए ध्यान खींचते हैं नशे के दौरान उन्हें मामूली या गैर जरूरी समझा जाता है.
लॉजिकल प्रोसेसिंग कमजोर होने और भावनात्मक केंद्र के ज्यादा एक्टिव होने की वजह से एक इंसान सहज या फिर भावनात्मक प्रतिक्रियाओं पर ज्यादा निर्भर हो जाता है.