Internet Ownership: पूरी दुनिया में कौन है इंटरनेट का मालिक, कहां से शुरू होती है इसकी सप्लाई चेन?
इंटरनेट किसी भी सरकारी या फिर कंपनी के मालिकाना हक में नहीं है. यह हजारों छोटे नेटवर्कों से बना एक ग्लोबल नेटवर्क है और ये अपनी इच्छा से एक दूसरे से जुड़े हुए हैं. हर हिस्सा केबल्स, सर्वर, नेटवर्क मालिकाना हक में है. यानी कि कोई भी एक अथॉरिटी पूरे सिस्टम को कंट्रोल नहीं करती है.
इंटरनेट हायरार्की में सबसे ऊपर टियर 1 नेटवर्क प्रोवाइडर्स होते हैं. ये ऐसी कंपनियां है जो समुद्र के नीचे बड़े फाइबर ऑप्टिक केबल बिछाकर महाद्वीपों को जोड़ती हैं. यह कंपनियां बिचौलियों को भुगतान किए बिना सीधा एक दूसरे के साथ ट्रैफिक का आदान प्रदान करती हैं. बड़े प्लेयर्स में टाटा, कम्युनिकेशंस, गूगल, मेटा, माइक्रोसॉफ्ट, अमेजन आदि शामिल हैं.
टियर 2 प्रोवाइडर्स टियर 1 नेटवर्क से बैंडविड्थ खरीदते या फिर एक्सचेंज करते हैं. इसके बाद इसे राष्ट्रीय स्तर पर बांटा जाता है. भारत में रिलायंस जियो, भारतीय एयरटेल, वोडाफोन आइडिया और बीएसएनएल जैसी कंपनियां इस भूमिका को निभाती हैं.
इंटरनेट आखिरकार टियर 3 इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर्स के जरिए से यूजर्स तक पहुंचता है. यह स्थानीय या फिर क्षेत्रीय ऑपरेटर होते हैं जो टियर 2 कंपनियों से कनेक्टिविटी को खरीदते हैं. साथ ही फाइबर, केबल या फिर वायरलेस नेटवर्क के जरिए से लास्ट माइल एक्सेस प्रदान करते हैं.
इंटरनेट पनडुब्बी फाइबर ऑप्टिक केबल से शुरू होता है, जो सभी ग्लोबल डेटा ट्रैफिक का लगभग 99% ले जाते हैं. ये केबल महाद्वीपों को जोड़ते हैं और तटीय लैंडिंग स्टेशनों पर खत्म होते हैं. भारत में बड़े लैंडिंग पॉइंट्स मुंबई, चेन्नई और कोच्चि में हैं. समुद्र में एक सिंगल केबल कटने से कई देशों में इंटरनेट एक्सेस रुक सकता है.
जब डेटा केबल से गुजरता है तो उसे डाटा सेंटर में स्टोर और प्रक्रिया किया जाता है. इस बीच जो नियम इंटरनेट को इंटरऑपरेबल बनाते हैं उन्हें ICANN और IETF जैसे नॉन प्रॉफिट संगठन कंट्रोल करते हैं.