भारत में किसने की फिल्टर कॉफी की शुरुआत? जानें इसके पीछे की दिलचस्प कहानी
भारत में कॉफी की कहानी 17 वीं शताब्दी से शुरू हुई, जब सूफी संत बाबा बुदान हज से लौटते समय यमन के मोर्चा बंदरगाह से सात कॉफी बीच चुपके से ले आए थे. इसके बाद उन्होंने इन बीजों को कर्नाटक के चिकमंगलूर में लगाया था.
कॉफी के बीजों को चिकमंगलूर की पहाड़ियों में लगाना ही भारत में कॉफी की शुरुआत माना जाता है. जहां बाबा बुदान ने कॉफी के बीज लगाए थे, वहीं पहाड़ियां आगे चलकर बाबा बुदन गिरी की पहाड़ियां कहलाई जाने लगी. आज इसी जगह को भारत में कॉफी का जन्म स्थान भी माना जाता है.
इसके बाद 1800 के दशक में ब्रिटिशों ने दक्षिण भारत के मौसम को कॉफी की खेती के लिए उपयुक्त समझा और बड़े पैमाने पर कॉफी का उत्पादन शुरू किया. वहीं यही से कॉफी दक्षिण भारतीय समाज और संस्कृति का अहम हिस्सा बनती चली गई.
1940 से 50 के दशक में इंडियन कॉफी हाउस की स्थापना हुई, जिसने कॉफी को भारत में फेमस बनाने में बड़ी भूमिका निभाई थी. वहीं आज भी इंडियन कॉफी हाउस को कॉफी कलर की पहचान माना जाता है. आज भी दक्षिण के राज्यों में लगभग पूरे देश की 95 प्रतिशत कॉफी का उत्पादन होता है. इनमें कर्नाटक में 71 प्रतिशत केरल में 21 प्रतिशत और तमिलनाडु में 5 प्रतिशत कॉफी का उत्पादन होता है.
वहीं दक्षिण भारत में फिल्टर कॉफी सिर्फ एक ड्रिंक नहीं बल्कि कल्चर और परंपरा मानी जाती है. यहां शादी समारोह और पारिवारिक मिलन में कॉफी को स्टील के टंबर- दाबरा में परोसा जाता है. दक्षिण भारत में गरमा-गरम कॉफी परोसना एक आदर का प्रतीक माना जाता है.
वहीं फिल्टर कॉफी का असली स्वाद अरेबिका और रोबस्टा बीन्स के मिक्सर और उसमें मिलाई जाने वाली चिकोरी से आता है जो कॉफी को घना टेक्सचर और खास कड़वाहट देता है.
वहीं आज भी फिल्टर कॉफी पूरी दुनिया में फेमस है. टेस्ट एटलस की टॉप 38 कॉफी इन द वर्ल्ड लिस्ट में फिल्टर कॉफी दूसरे नंबर पर रही. जिससे इसकी पॉपुलैरिटी और बढ़ गई.