कृत्रिम बारिश किन-किन देशों में कराई जाती है... इसका असर कितने दिनों तक रहता है?
वैश्विक स्तर पर क्लाउड सीडिंग पर 1940 के दौर से ही काम जारी है. क्लाउड सीडिंग मौसम में बदलाव करने की एक वैज्ञानिक तरीका है. इस प्रक्रिया के तहत आर्टिफिशियल तरीके से बारिश करवाई जाती है.
क्लाउड सीडिंग की प्रक्रिया के दौरान छोटे-छोटे विमानों को बादलों के बीच से गुजारा जाता है. ये विमान सिल्वर आयोडाइड, ड्राई आइस और क्लोराइड छोड़े जाते हैं. इससे बादलों में पानी की बूंदें जम जाती हैं.
यही पानी की बूंदें फिर बारिश बनकर जमीन पर गिरती हैं. क्लाउड सीडिंग के जरिए करवाई गई आर्टिफिशियल बारिश सामान्य बारिश की तुलना में ज्यादा तेज होती है. और इसका असर भी काफी समय तक रहता है. एक बार क्लाउड सीडिंग करने के बाद उससे बार बार बारिश नहीं कराई जा सकती है.
संयुक्त राष्ट्र से संबद्ध वर्ल्ड मीटियरोलॉजिकल ऑर्गनाइजेशन ने साल 2017 की अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि दुनिया के 50 से ज्यादा देशों में क्लाउड सीडिंग को आजमा चुके हैं. चीन, अमेरिका, रूस, ऑस्ट्रेलिया और जापान जैसे प्रमुख देश इसमें शामिल हैं.
साल 2008 में बीजिंग ओलंपिक के दौरान बारिश खेल न बिगाड़ दे, इसलिए चीन ने वेदर मोडिफिकेशन सिस्टम का इस्तेमाल कर पहले ही बारिश करवा दी. चीन की योजना वर्ष 2025 तक देश के 55 लाख वर्ग किलोमीटर इलाके को आर्टिफिशियल बारिश के तहत कवर करने की है.
टोक्यो ओलंपिक और फिर पैरालंपिक के दौरान जापान ने भी आर्टिफिशियल रेन जनरेटर का भरपूर इस्तेमाल किया था. यूएई ने एक साल पहले यानी 2022 में क्लाउड सीडिंग के जरिए इतनी जोरदार बारिश कराई थी कि बाढ़ की स्थिति बन गई. थाईलैंड सरकार की योजना 2037 तक इसके जरिए सूखाग्रस्त इलाकों को हराभरा बना बनाने की है.