न चाहकर भी शॉपिंग मॉल से जरूरत से ज्यादा सामान खरीद लेते हैं आप? यहां काम करता है मार्केटिंग का ये कॉन्सेप्ट
लेकिन मॉल में मार्केटिंग का कॉन्सेप्ट कुछ ऐसा होता है जिससे आप शॉपिंग मॉल तो दो चार चीजे हीं खरीदने जाते हैं, लेकिन बाहर निकलते वक्त आपके हाथों में ढेर सारे बैग्स होते हैं, जिनमें से आधा सामान तो आपकी लिस्ट में होता ही नहीं है.
तो चलिए आपको बताते हैं वो मार्केटिंग सीक्रेट. सबसे पहले तो आपने देखा होगा मॉल में घुसते ही वहां आपको बड़े-बड़े कार्ट्स नजर आ जाते हैं ये बड़े इसलिए होते हैं जिससे आप ज्यादा से ज्यादा सामान खरीद सकें.
शॉपिंग मॉल को डिजाइन भी ऐसे किया जाता है कि आप वहां घूमते हुए ज्यादा चीजों को एक्सप्लोर कर सकें. वहां खिड़कियां भी कम होती हैं जिससे लोगों को बाहर का नजारा नहीं दिखता और उन्हें मॉल में समय का अंदाजा नहीं लग पाता.
मॉल में ग्राहकों को लुभाने के लिए कई सामानों की कीमतें सिर्फ 99 या 999 होती हैं इसे 'लेफ्ट डिजिट इफेक्ट' कहते हैं. यानि ग्राहकों को लेफ्ट डिजिट वाली चीजें सस्ती लगती हैं इसलिए लोग उसे खरीद लेते हैं.
इतना ही नहीं शॉपिंग मॉल में SALE के साइन ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए लगाए जाते हैं. सेल का नाम सुनकर हर कोई उस सामान को लेने के बारे में सोचता है.
इसके अलावा मॉल में घुसते समय ज्यादातर लोग शॉपिंग के लिए राइट साइड मुड़ते हैं यही वजह है राइट साइड महंगी और आकर्षित चीजें रखी होती है जिससे ग्राहक वहीं रुककर उस सामान को खरीदने पर मजबूर हो जाए.
मॉल के अंदर का वातावरण ग्राहकों को कंफर्ट महसूस कराता है. धीमा म्यूजिक, बेहतरीन खुशबूदार माहौल, आकर्षक रोशनी ग्राहकों को वहां देर तक रुकने के लिए मजबूर कर देती है जिससे ज्यादा पैसे खर्च करने की संभावना बढ़ जाती है.