हाइड्रोजन बम बनाने में किन-किन चीजों का होता है इस्तेमाल, एटम बम के मुकाबले यह कितना खतरनाक?
हाइड्रोजन बम बनाने में मुख्य रूप से हाइड्रोजन के दो विशेष आइसोटोप-ड्यूटेरियम और ट्रिटियम का इस्तेमाल किया जाता है.
ये दोनों हल्के तत्व हैं, जिन्हें आपस में मिलाकर न्यूक्लियर फ्यूजन प्रक्रिया के जरिए ऊर्जा पैदा की जाती है. इसके अलावा इसमें भारी मात्रा में लिथियम ड्यूटेराइड का भी इस्तेमाल होता है, जो विस्फोट के समय ट्रिटियम में बदलकर फ्यूजन को और शक्तिशाली बनाता है.
हालांकि सिर्फ इन हल्के तत्वों से बम नहीं बन सकता, हाइड्रोजन बम को सक्रिय करने के लिए पहले एक छोटा एटम बम जो कि यूरेनियम-235 या प्लूटोनियम-239 से बना होता है, फोड़ा जाता है.
यह एटम बम इतनी ज्यादा गर्मी और दबाव पैदा करता है कि ड्यूटेरियम और ट्रिटियम आपस में मिलकर फ्यूजन शुरू कर देते हैं. यही फ्यूजन हाइड्रोजन बम को असाधारण रूप से विनाशकारी बनाता है.
एटम बम की ताकत किलोटन में मापी जाती है, यानी हजारों टन टीएनटी के बराबर. उदाहरण के लिए, हिरोशिमा पर गिराए गए बम की क्षमता करीब 15 किलोटन थी.
वहीं हाइड्रोजन बम की ताकत मेगाटन में होती है, यानी लाखों टन टीएनटी के बराबर. इतिहास का सबसे बड़ा हाइड्रोजन बम सोवियत संघ ने 1961 में टेस्ट किया था, जिसे Tsar Bomba कहा गया था.
इसकी क्षमता 50 मेगाटन थी, यानी हिरोशिमा पर गिराए गए एटम बम से लगभग 3000 गुना ज्यादा शक्तिशाली था. वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर आज किसी बड़े शहर पर ऐसा बम गिरा दिया जाए तो लाखों लोग तुरंत मारे जाएंगे और पूरे क्षेत्र पर दशकों तक रेडिएशन का असर रहेगा.