Shooting Stars: क्या होती है तारों के टूटने की वजह, जानें आसमान से टूटकर ये कहां गिरते हैं
जिसे हम आमतौर पर टूटता तारा कहते हैं वह असल में एक उल्का पिंड होता है. यह अंतरिक्ष में तैरता हुआ चट्टान या फिर धातु का एक छोटा टुकड़ा होता है. यह टुकड़े अकसर टूटे हुए क्षुद्रग्रहों या फिर धूमकेतुओं द्वारा छोड़े गए धूल भरे रास्तों से आते हैं. जब पृथ्वी इन मलबे से भरे रास्तों से गुजरती है तो हजारों उल्का पिंड हमारे ग्रह के वायुमंडल के अंदर आते हैं. इसी वजह से वे चमकदार रोशनी की लकीरें बनती हैं.
उल्कापिंड पृथ्वी के वायुमंडल में काफी तेजी से आते हैं. यह रफ्तार 40,000 से 70,000 किलोमीटर प्रति घंटे तक होती है. यह जबरदस्त रफ्तार पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण खिंचाव की वजह से होती है जो किसी भी चीज को अपनी ओर खींचती है.
जैसे ही उल्का पिंड पृथ्वी के वायुमंडल में आता है वह हवा के मॉलिक्यूल से जोर से टकराता है. इस टक्कर से फ्रिक्शन और कंप्रेशन की वजह से काफी ज्यादा गर्मी पैदा होती है. इसके बाद उल्का पिंड की सतह लगभग तुरंत जलकर हवा में मिलने लगती है. इसके बाद आयनित गैस का एक चमकदार निशान बनता है. यही निशान हमें टूटते तारे के रूप में दिखाई देता है.
टूटते तारे जमीन के पास नहीं जलते हैं. ज्यादातर उल्का पिंड पृथ्वी के सतह से 80 से 120 किलोमीटर ऊपर ही नष्ट हो जाते हैं. इस ऊंचाई पर वायुमंडल पतला होता है लेकिन इसके बावजूद भी इतना घना होता है कि आने वाले ज्यादातर अंतरिक्ष कणों को नष्ट कर सके.
कुछ मामलों में एक उल्कापिंड इतना बड़ा और घना होता है कि वह अपनी आग वाली यात्रा से बच जाता है. अगर कोई टुकड़ा धरती की सतह पर पहुंचते हैं तो यह टकराने से पहले तेजी से ठंडे हो जाते हैं और अक्सर रेगिस्तान, ध्रुवीय क्षेत्र या फिर खुले मैदानों में पाए जाते हैं.
जब उल्का पिंड धरती पर पहुंचते हैं तब भी उनके लोगों या फिर इमारत से टकराने की संभावना काफी कम होती है. ऐसा इसलिए क्योंकि धरती का 70% से ज्यादा हिस्सा महासागरों से ढका हुआ है, इसलिए ज्यादातर बचे हुए टुकड़े पानी में गिर जाते हैं और बिना खोजे रह जाते हैं.