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आर्य समाज में की गई शादी इस्लाम में कितनी मान्य, इस पर क्या करते हैं काजी?

नेहा सिंह   |  12 Aug 2025 06:21 PM (IST)
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आर्य समाज में शादी हिंदू मैरिज एक्ट 1955 और आर्य समाज वैलिडेशन एक्ट 1937 के तहत वैध होती है. बशर्ते दोनों पक्ष हिंदू, जैन, सिख या बौद्ध हों. लेकिन जब बात इस्लाम में इसकी मान्यता की आती है, तो स्थिति जटिल हो जाती है, क्योंकि इस्लामिक कानून (शरीयत) और हिंदू विवाह प्रथाओं के बीच काफी अंतर हैं.

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इस्लाम में निकाह कुरान के अनुसार संपन्न होता है. निकाह के लिए कुछ शर्तें अनिवार्य हैं जैसे दोनों पक्षों का मुस्लिम होना या गैर-मुस्लिम पक्ष का इस्लाम स्वीकार करना, आपसी सहमति, मेहर का निर्धारण और दो गवाहों की उपस्थिति में काजी द्वारा निकाह पढ़ाया जाना.

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आर्य समाज में होने वाली शादी हिंदू वैदिक रीति से होती है, जिसमें अग्नि के सात फेरे जैसे अनुष्ठान शामिल हैं. ये रीति-रिवाज इस्लामिक निकाह से पूरी तरह अलग हैं. इसलिए, इस्लामिक कानून के अनुसार आर्य समाज में की गई शादी को निकाह के रूप में मान्यता नहीं मिलती, जब तक कि दोनों पक्ष इस्लाम स्वीकार न करें और शरीयत के अनुसार निकाह न करें.

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आर्य समाज में अंतर-धार्मिक विवाह के लिए गैर-हिंदू पक्ष को 'शुद्धि' प्रक्रिया के तहत हिंदू धर्म अपनाना पड़ता है. जैसे यदि एक मुस्लिम व्यक्ति आर्य समाज में शादी करना चाहता है, तो उसे पहले हिंदू धर्म स्वीकार करना होगा. यह शुद्धि प्रक्रिया इस्लाम में धर्मत्याग मानी जाती है, जो शरीयत में गंभीर अपराध है. इस कारण, इस्लामिक दृष्टिकोण से ऐसी शादी को वैध नहीं माना जाता

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आर्य समाज की शादी में कोई भूमिका नहीं निभाता. इस्लाम में काजी का काम शरीयत के अनुसार निकाह पढ़ाना, मेहर तय करना और गवाहों की उपस्थिति में विवाह को विधिवत पूरा करना है.

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भारत में आर्य समाज की शादी को मान्यता हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के तहत मिलती है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि आर्य समाज द्वारा जारी विवाह प्रमाणपत्र अपने आप में कानूनी सबूत नहीं है और इसे एसडीएम कार्यालय में पंजीकृत कराना आवश्यक है.

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इस्लामिक समुदाय में, ऐसी शादियों को सामाजिक स्वीकृति मिलना मुश्किल हो सकता है, क्योंकि वे शरीयत का पालन नहीं करतीं. ऐसे में आर्य समाज में की गई शादी इस्लाम में मान्य नहीं होती, क्योंकि यह शरीयत की शर्तों को पूरा नहीं करती.

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