इन देशों में सेना का नामोनिशान नहीं, फिर दुश्मनों से कैसे रहते हैं सुरक्षित?
दुनिया में सुरक्षा व्यवस्था का नाम आते ही ज्यादातर लोगों के दिमाग में सेना की ताकत, हथियारों का भंडार और फौज की तैयारियां आती हैं, लेकिन कुछ देश ऐसे भी हैं जो बिना सेना के भी सालों से सुरक्षित हैं और शांतिपूर्वक जी रहे हैं. इन देशों ने अपनी रक्षा के लिए सेना नहीं बल्कि कूटनीति, अंतरराष्ट्रीय गठबंधनों और पुलिस बल पर भरोसा किया है.
सबसे पहले बात करते हैं मॉरीशस की. हिंद महासागर में बसे इस खूबसूरत द्वीप राष्ट्र के पास कोई सेना नहीं है. यहां सुरक्षा का जिम्मा पुलिस और एक विशेष अर्धसैनिक बल, स्पेशल मोबाइल फोर्स के हाथों में है.
जरूरत पड़ने पर ये बल देश की रक्षा भी संभाल लेता है. हालांकि मॉरीशस शांतिपूर्ण कूटनीति में विश्वास रखता है और उसकी भौगोलिक स्थिति भी उसे सीधे संघर्षों से दूर रखती है.
दूसरा नाम है आइसलैंड. यह देश यूरोप का दूसरा सबसे बड़ा द्वीप है और अपनी खूबसूरती के लिए दुनिया भर में मशहूर है. यहां 1869 से सेना नहीं है, लेकिन सुरक्षा को लेकर यह बिल्कुल अकेला नहीं है. आइसलैंड नाटो का सदस्य है, और किसी भी बड़े खतरे की स्थिति में अमेरिका, नार्वे और अन्य नाटो देश इसकी रक्षा करते हैं.
अब आते हैं छोटे मगर बेहद सुरक्षित देश लिकटेंस्टीन पर. यूरोप में बसे इस देश ने 1868 में सेना खत्म कर दी थी क्योंकि वह खर्च नहीं उठा सकता था. तब से देश ने शांतिपूर्ण रवैया अपनाया और स्विट्जरलैंड एवं ऑस्ट्रिया जैसे पड़ोसी देशों पर भरोसा किया. रोजमर्रा की सुरक्षा उसकी पुलिस संभालती है, और जरूरत पड़ने पर स्विट्जरलैंड तुरंत मदद करता है.
चौथा देश है कोस्टा रिका, जिसने 1948 के भयंकर गृहयुद्ध के बाद सेना को हमेशा के लिए खत्म कर दिया. कोस्टा रिका ने फैसला किया कि सेना पर खर्च होने वाला पैसा शिक्षा, स्वास्थ्य और विकास में लगाया जाएगा. आज दुनिया में इसे शांति का प्रतीक माना जाता है. देश की सुरक्षा पुलिस और विशिष्ट सरकारी एजेंसियां संभालती हैं. इसकी विदेश नीति और मजबूत अंतरराष्ट्रीय रिश्ते इसे किसी भी सैन्य खतरे से दूर रखते हैं.
दुनिया के सबसे छोटे देश वैटिकन सिटी में पहले नोबल गार्ड नाम की सुरक्षा इकाई थी, लेकिन 1970 में इसे भंग कर दिया गया. अब वैटिकन की सुरक्षा मुख्य रूप से स्विस गार्ड करते हैं, जबकि बड़े खतरे की स्थिति में इटली पूरी जिम्मेदारी संभालता है. धर्म, शांति और संवाद में विश्वास रखने वाला यह देश सैन्य शक्ति से ज्यादा अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान पर भरोसा करता है.