खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है... इस बात में कितनी है सच्चाई?
आपने कई बार इस कहावत को किसी न किसी से सुना ही होगा. कई बार तो आप भी इस कहावत का प्रयोग जरूरत करते होंगे, लेकिन आपको इसका मतलब पता है और क्या सच में इस बात में सच्चाई है कि खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है?
पहले तो इस कहावत का मतलब जान लेते हैं. यह कहावत किसी की संगति के लिए कही जाती है. यानी हम जैसी संगति में रहते हैं, वैसा ही व्यवहार हमारा भी हो जाता है. इसीलिए लोगों से कहा जाता है कि वे अच्छे लोगों की संगति करें और उनके साथ ही दोस्ती करें.
अब आते हैं इस कहावत के वैज्ञानिक आधार पर. विज्ञान में यह कहीं नहीं लिखा कि खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदल लेता है. आप सोच रहे होंगे कि फिर ये कहावत क्यों कहीं गई? चलिए आपको बताते हैं...
वैज्ञानिक आधार की बात करें तो हर फल को पकाने के लिए एथिलीन गैस महत्वपूर्ण होती है. जब भी कोई फल पक रहा होता है तो वह एथिलीन गैस रिलीज करता है. इससे उसके आसपास रखे हुए फल भी पकना शुरू हो जाते हैं.
ऐसा खरबूजे के साथ भी होता है. खरबूजा जब पकता है तो वह एथिलीन गैस रिलीज करता है, जिससे अन्य खरबूजे भी पकना शुरू हो जाते हैं. कई बार ज्यादा पकने की वजह से फल सड़ने भी लगते हैं.
हालांकि, सिर्फ खरबूजा ही नहीं, आम, केला, अमरूद जैसे कई फल पकने पर एथिलीन गैस रिलीज करते हैं, जिससे पास रखे अन्य फल भी पकना शुरू हो जाते हैं. हालांकि, यह कहावत सिर्फ खरबूजे के लिए ही क्यों कही गई, इसकी स्पष्ट जानकारी नहीं है.