IndiGo Flight Cancellation: ट्रेन के डायनमिक किराये और प्लेन के डायनमिक किराये में क्या अंतर है, कैसे तय होते हैं रेट?
एयरलाइन पूरी तरह से प्रॉफिट को ज्यादा से ज्यादा करने के लिए डायनमिक प्राइसिंग का इस्तेमाल करती है. एयरलाइन हर सीट को रिवेन्यू इन्वेंटरी मानती है. इंडियन रेलवे एक पब्लिक सर्विस प्रोवाइडर होने की वजह से सिर्फ चुनिंदा प्रीमियम ट्रेनों में डायनमिक प्राइसिंग अपनाता है.
हवाई किराया मिनट दर मिनट बदल सकता है क्योंकि यह मार्केट ड्रिवन है. लेकिन ट्रेन का किराया फ्लेक्सी फेयर सिस्टम के तहत फिक्स्ड स्लैब में बढ़ता है. इसका मतलब है कि यहां बेची गई हर 10% सीटों पर 10% की कंट्रोल्ड बढ़ोतरी होती है.
इंडियन रेलवे की एक सख्त ऊपरी सीमा है. प्रीमियम ट्रेनों में किराया बेस प्राइस के 50% से ज्यादा नहीं बढ़ सकता. लेकिन एयरलाइंस पर सरकार द्वारा कोई ऊपरी सीमा तय नहीं है. यानी कि पीक डिमांड, इमरजेंसी या फिर आखिरी मिनट की यात्रा के दौरान किराया कई गुना बढ़ाया जा सकता है.
एयरलाइन एडवांस्ड एल्गोरिथम पर निर्भर करती है. यह सैकड़ों वेरिएबल जैसे की डिमांड, कंपीटीटर्स किराया, बुकिंग का समय, त्योहार और ऐतिहासिक डेटा को एनालाइज करके रियल टाइम में टिकट की कीमत तय करती है. रेलवे सिर्फ बेची गई सीटों के प्रतिशत के आधार पर ही पहले से तय फॉर्मूले का इस्तेमाल करता है.
जैसे-जैसे सीटें भरती हैं ट्रेन का किराया लगभग हमेशा बढ़ता है. डिमांड कम होने पर भी यह शायद ही कभी कम होता है. हवाई किराया बढ़ और घट दोनों सकता है. कम डिमांड, प्रमोशनल सेल या फिर कंपटीशन की वजह से ऑफ पीक समय में फ्लाइट कभी-कभी ट्रेनों से सस्ती हो जाती है.
एयरलाइन लगातार अपने कंपीटीटर्स के किराए पर नजर रखती है. इसी के साथ वह सेकंडों में कीमत एडजस्ट करती है. रेलवे को उसी रूट पर ऐसा कोई कंपटीशन नहीं मिलता. इसका सीधा सा मतलब होता है कि किराए में उतार चढ़ाव अंदरूनी तौर पर कंट्रोल होते हैं.