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इस देश में आसमान छूती है अमीरी, फिर पीएम से मंत्री तक साइकिल चलाने पर क्यों हैं मजबूर?

निधि पाल   |  30 Nov 2025 05:13 PM (IST)
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नीदरलैंड… दुनिया का वो अनोखा देश जहां अमीरी शो-ऑफ बनकर सड़कों पर दहाड़ती नहीं, बल्कि सादगी बनकर पैडल में सिमट जाती है. यहां की सड़कों पर लग्जरी कारें जरूर हैं, लेकिन भीड़ नहीं है. ऑफिस की ओर बढ़ते लोग मिलते हैं, लेकिन मोटर की गूंज में नहीं, साइकिल की हल्की सर्राहट में. और यही दृश्य इस देश की सबसे बड़ी पहचान है.

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यहां के लोग पैसा खर्च करना नहीं भूल गए, बस उन्होंने जिंदगी जीने का तरीका बदल दिया है. जहां दुनिया ट्रैफिक में फंसकर वक्त गंवाती है, नीदरलैंड के लोग हर सुबह ताजी हवा में पैडल मारते हुए मंजिल तक पहुंचते हैं. और यह सब किसी सरकारी आदेश की मजबूरी नहीं, बल्कि एक सामाजिक चुनाव है, एक जिम्मेदार संस्कृति है.

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कहानी 1970 के दशक से शुरू होती है, जब दुनिया पेट्रोल संकट से जूझ रही थी, नीदरलैंड एक अलग ही मुसीबत में था. यहां सड़कों पर बच्चों की बढ़ती दुर्घटनाएं और बिगड़ता शहरी संतुलन बहुत परेशान कर रहा था.

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इस देश में ट्रैफिक इतना बढ़ गया था कि लोग कारों से डरने लगे थे. तब जनता ने बड़े पैमाने पर आंदोलन शुरू किया Stop de Kindermoord यानि बच्चों की हत्या बंद करो. तब सरकार को जनता की आवाज सुननी ही पड़ी.

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इसके बाद शहरों का नक्शा बदला गया, कार लेन घटाई गईं, साइकिल ट्रैक चौड़े किए गए. फुटपाथ सुरक्षित किए गए. ब्रिज, अंडरपास, स्मार्ट पार्किंग सब कुछ साइकिल की जरूरतों को देखते हुए बनाया गया. इसका परिणाम है कि नीदरलैंड आज दुनिया का सबसे सुरक्षित, सबसे सुव्यवस्थित और सबसे स्टाइलिश साइकिलिंग देश बन चुका है.

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यहां साइकिल चलाना मजबूरी नहीं सम्मान है. प्रधानमंत्री मार्क रुट्टे संसद तक अपनी साइकिल पर जाते हैं. न रेड-बीकन गाड़ी, न भारी सुरक्षा काफिला. क्योंकि यहां पावर का मतलब दिखावा नहीं, सादगी और जवाबदेही है.

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अगर पीएम साइकिल चला सकते हैं तो मंत्री, अधिकारी, प्रोफेसर और बिजनेसमैन भी उसी लाइन में चलते हैं. यह यहां की नॉर्मल संस्कृति है और समाज इसे ही सभ्यता मानता है.

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