क्रूज और बैलिस्टिक मिसाइलों से कितनी खतरनाक होती हैं हाइपरसोनिक मिसाइल, दुनिया के कितने देशों के पास ये ताकत
जब भी मिसाइलों की बात आती है तो हम तीन शब्द सुनते हैं- क्रूज, बैलिस्टक और हाइपरसोनिक. कई बार हम इन तीनों मिसाइलों को एक ही मान लेते हैं और कंफ्यूज हो जाते हैं. क्या आपको इन मिसाइलों में बारे में पता है?
दुनिया के कई देशों के पास क्रूज और बैलिस्टिक मिसाइलें हैं. हालांकि, हाइपरसोनिक मिसाइल्स कुछ ही देशों के पास हैं. इन मिसाइलों के हमले से दुश्मन के बचने की संभावना न के बराबर होती है.
क्रूज मिसाइलें जेट इंजन का प्रयोग करती हैं और लॉन्च होने के बाद लगभग सीधी रेखा में धरती के बराबर आगे बढ़ती हैं. इन मिसाइलों को पानी, जमीन या फिर हवा से दागा जा सकता है. कम दूरी के हमलों के लिए क्रूज मिसाइलों का प्रयोग होता है.
बैलिस्टिक मिसाइलों की बात करें तो यह क्रूज मिसाइलों की तुलना में खतरनाक होती हैं और क्रूज मिसाइलों की तरह सीधी रेखा में आगे नहीं बढ़तीं. लॉन्च होने के बाद ये मिसाइलें आसमान की ऊंचाई में जाती हैं और वायु मंडल को भी भेद सकती हैं. ये मिसाइलें ग्रेविटी के सिद्धांत के आधार पर काम की हैं. वायुमंडल में एंट्री करने के बाद ये अपने लक्ष्य की तरफ तेजी से बढ़ती हैं. इन मिसाइलों का उपयोग लंबी दूरी के हमलों के लिए किया जाता है.
वहीं हाइपरसोनिक मिसाइलें क्रूज और बैलिस्टिक मिसाइलों से भी ज्यादा खतरनाक होती हैं. इस तरह की मिसाइलें ध्वनि की गति से पांच गुना ज्यादा स्पीड से आगे बढ़ती हैं. यानी इनकी क्षमता 6100 किमी प्रति घंटे या उससे ज्यादा होती है.
हाइपरसोनिक मिसाइलों की स्पीड के कारण इन्हें ट्रैक करके टारगेट करना काफी मुश्किल होता है. वहीं, कम गति के कारण क्रूज और बैलिस्टिक मिसाइलों को ट्रैक किया जा सकता है.
दुनिया में चार ही देश हैं, जिन्होंने अब तक हाइपरसोनिक मिसाइलों का परीक्षण किया है. इसमें रूस, अमेरिका, चीन और भारत शामिल हैं. ये मिसाइलें चंद सेकेंड में दुश्मन के घर में तबाही मचा सकती हैं.