✕
  • होम
  • इंडिया
  • विश्व
  • उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड
  • बिहार
  • दिल्ली NCR
  • महाराष्ट्र
  • राजस्थान
  • मध्य प्रदेश
  • हरियाणा
  • पंजाब
  • झारखंड
  • गुजरात
  • छत्तीसगढ़
  • हिमाचल प्रदेश
  • जम्मू और कश्मीर
  • बॉलीवुड
  • ओटीटी
  • टेलीविजन
  • तमिल सिनेमा
  • भोजपुरी सिनेमा
  • मूवी रिव्यू
  • रीजनल सिनेमा
  • क्रिकेट
  • आईपीएल
  • कबड्डी
  • हॉकी
  • WWE
  • ओलिंपिक
  • धर्म
  • राशिफल
  • अंक ज्योतिष
  • वास्तु शास्त्र
  • ग्रह गोचर
  • एस्ट्रो स्पेशल
  • बिजनेस
  • हेल्थ
  • रिलेशनशिप
  • ट्रैवल
  • फ़ूड
  • पैरेंटिंग
  • फैशन
  • होम टिप्स
  • GK
  • टेक
  • ऑटो
  • ट्रेंडिंग
  • शिक्षा

वेंटिलेटर नहीं था तब कैसे होता था इलाज, जानें इसे किसने बनाया था?

निधि पाल   |  11 Nov 2025 01:00 PM (IST)
1

आज वेंटिलेटर आधुनिक चिकित्सा की रीढ़ बन चुका है. चाहे कोरोना महामारी के समय हो या किसी गंभीर एक्सीडेंट के बाद की स्थिति, वेंटिलेटर वो मशीन है जो इंसान को मौत के मुहाने से खींच लाती है, लेकिन सवाल उठता है कि जब ये मशीन नहीं थी, तब लोग सांस रुकने या फेफड़ों के फेल होने पर कैसे जिंदा बचते थे?

Continues below advertisement
2

20वीं सदी से पहले वेंटिलेटर जैसा कोई यंत्र नहीं था. डॉक्टर तब मैनुअल रेस्पिरेशन यानी हाथ से सांस देने की तकनीक अपनाते थे. इसमें डॉक्टर या नर्स मरीज के फेफड़ों में हवा भरने के लिए मुंह या एक विशेष ट्यूब का इस्तेमाल करते थे.

Continues below advertisement
3

इसे माउथ-टू-माउथ रेसुसिटेशन या बेलोज टेक्निक कहा जाता था. बेलोज तकनीक में एक छोटा पंप या चमड़े का थैला होता था, जिसे दबाकर मरीज के फेफड़ों में हवा भेजी जाती थी. हालांकि यह तरीका सीमित समय के लिए ही काम करता था और कई बार ज्यादा दबाव से फेफड़े फटने का खतरा भी रहता था.

4

वेंटिलेटर की असली कहानी शुरू होती है 1928 में, जब अमेरिकी वैज्ञानिक फिलिप ड्रिंकर और लुई एगासीज शॉ ने पहला ‘आयरन लंग’ यानी लोहे का फेफड़ा बनाया था. यह एक बड़ा धातु का सिलेंडर था, जिसमें मरीज को गर्दन तक रखा जाता था.

5

मशीन बाहरी प्रेशर से मरीज के सीने को फैलाकर और सिकोड़कर सांस लेने में मदद करती थी. इसने पहली बार दुनिया को दिखाया कि मशीन भी इंसान की सांसें चला सकती है. इसके बाद 1950 के दशक में “पॉजिटिव प्रेशर वेंटिलेटर” आए, जो सीधे मरीज की नली में हवा भेजकर फेफड़ों को काम करने में मदद करते थे.

6

इन मशीनों ने ICU और ऑपरेशन थियेटरों की तस्वीर ही बदल दी. कोरोना महामारी के दौरान जब दुनिया भर में मरीजों की सांसें थमने लगीं, तब वेंटिलेटर ने लाखों जिंदगियां बचाईं. लेकिन यह जानना भी जरूरी है कि वेंटिलेटर कोई जादुई मशीन नहीं है. अगर मरीज की स्थिति बहुत गंभीर हो, तो यह सिर्फ थोड़े समय के लिए शरीर को ऑक्सीजन पहुंचाने में मदद करता है.

7

कई बार मरीज की बॉडी मशीन पर निर्भर हो जाती है, जिससे डॉक्टरों को तय करना पड़ता है कि कब उसे हटाना सही रहेगा. आज के समय में वेंटिलेटर स्मार्ट तकनीक से लैस हैं, जिसमें सेंसर, डिजिटल डिस्प्ले और एआई सपोर्ट से लैस ये मशीनें मरीज की सांस के पैटर्न को पढ़कर खुद ही एडजस्ट हो जाती हैं.

  • हिंदी न्यूज़
  • फोटो गैलरी
  • जनरल नॉलेज
  • वेंटिलेटर नहीं था तब कैसे होता था इलाज, जानें इसे किसने बनाया था?
Continues below advertisement
About us | Advertisement| Privacy policy
© Copyright@2025.ABP Network Private Limited. All rights reserved.