कहां होगी कितनी बारिश? इसका पता कैसे लगा लेते हैं वैज्ञानिक, जानिए पूरा विज्ञान
बारिश का पूर्वानुमान यानी वेदर फोरकास्टिंग एक जटिल लेकिन रोमांचक विज्ञान है जो मौसम की भविष्यवाणी को संभव बनाता है. तो आइए, इस विज्ञान को समझते हैं.
मौसम की भविष्यवाणी करने के लिए वैज्ञानिक कई तरह के उपकरणों, तकनीकों और डेटा का इस्तेमाल करते हैं. सबसे पहले, मौसम का डेटा इकट्ठा किया जाता है.
इसके लिए सैटेलाइट्स, रडार, मौसम स्टेशन जैसे उपकरणों का उपयोग होता है. सैटेलाइट्स बादलों की गति, तापमान और नमी के स्तर को मॉनिटर करते हैं. जबकि रडार बारिश की तीव्रता और दिशा को ट्रैक करते हैं. मौसम स्टेशन हवा की गति, दबाव और तापमान जैसी जानकारी देते हैं.
इकट्ठा किया गया डेटा सुपरकंप्यूटर्स में भेजा जाता है, जो मौसम के गणितीय मॉडल्स चलाते हैं. ये मॉडल्स वायुमंडल की गतिशीलता को समझने के लिए भौतिकी और गणित के नियमों पर आधारित होते हैं.
उदाहरण के लिए हवा का दबाव, तापमान और नमी जैसे कारक आपस में कैसे इंटरैक्ट करते हैं, इसे समझने के लिए जटिल समीकरणों का उपयोग होता है.
मौसम वैज्ञानिक इन कारकों का अध्ययन करके अनुमान लगाते हैं और भविष्य के मौसम की स्थिति की भविष्यवाणी करते हैं कि बारिश कहां और कितनी होगी.
भारत में, भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) और नेशनल सेंटर फॉर मीडियम रेंज वेदर फोरकास्टिंग (NCMRWF) जैसे संस्थान इन मॉडल्स का उपयोग करते हैं.