समंदर में पुल बनाना कितना मुश्किल? जानें तकनीक और इंजीनियरिंग का मास्टरप्लान
आज की आधुनिक दुनिया में पानी के ऊपर बने पुल सिर्फ कंक्रीट और स्टील की संरचना नहीं हैं, बल्कि वे विकास की रीढ़ हैं. समुद्री पुल द्वीपों, तटीय शहरों और व्यापारिक रास्तों को जोड़ते हैं.
इनके बिना न केवल आवाजाही मुश्किल हो जाती है, बल्कि आर्थिक गतिविधियां भी बुरी तरह प्रभावित होती हैं. यही कारण है कि इंजीनियरिंग के क्षेत्र में समुद्री पुलों को सबसे चुनौतीपूर्ण प्रोजेक्ट माना जाता है.
समंदर में पुल का डिजाइन स्थान के अनुसार तय होता है. कहीं पानी गहरा होता है, कहीं तेज धाराएं होती हैं, तो कहीं समुद्री तल कमजोर मिट्टी का बना होता है. इसी आधार पर बीम ब्रिज, आर्च ब्रिज, केबल-स्टे ब्रिज या सस्पेंशन ब्रिज जैसे अलग-अलग डिजाइन चुने जाते हैं.
लंबी दूरी और गहरे पानी में सस्पेंशन और केबल-स्टे ब्रिज ज्यादा उपयुक्त माने जाते हैं क्योंकि इनमें भार को केबल्स के जरिए दूर तक ट्रांसफर किया जाता है.
समंदर में पुल बनाते समय सबसे कठिन काम उसकी फाउंडेशन तैयार करना होता है. पानी जितना गहरा और बहाव जितना तेज, चुनौती उतनी ही बढ़ जाती है. मजबूत नींव के बिना पुल का अस्तित्व संभव नहीं है. इसी वजह से इंजीनियर कॉफरडैम तकनीक का इस्तेमाल करते हैं.
कॉफरडैम दरअसल पानी के भीतर बनाया गया अस्थायी घेरा होता है, जिसके अंदर से पानी निकालकर सूखे वातावरण में नींव डाली जाती है. कॉफरडैम को स्टील की मोटी शीट्स से गोल या चौकोर आकार में तैयार किया जाता है.
इसे समुद्र की सतह के नीचे गहराई तक गाड़ा जाता है ताकि अंदर का हिस्सा सुरक्षित रहे. इसके बाद पानी को पंप के जरिए बाहर निकाला जाता है और भीतर मजबूत कंक्रीट फाउंडेशन तैयार की जाती है. यही फाउंडेशन आगे चलकर पुल के पिलर्स का आधार बनती है.
समुद्री पुलों पर सिर्फ वाहनों का ही नहीं, बल्कि हवा, लहरों और खुद पुल के वजन का भी भारी दबाव पड़ता है. इंजीनियर इस भार को पिलर्स और केबल्स के जरिए सीधे जमीन तक पहुंचाते हैं. भार का सही वितरण ही पुल की मजबूती की कुंजी होता है. इसी वजह से डिजाइन के दौरान ट्रैफिक लोड, भूकंप, तूफान और ज्वार-भाटा जैसी स्थितियों का गहन अध्ययन किया जाता है.