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कब से शुरू हुई हाथ मिलाने की परंपरा, जब हैंड-शेक नहीं करते थे तब कैसे मिलते थे दो लोग?

निधि पाल   |  21 Dec 2025 01:49 PM (IST)
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आज हैंडशेक को सम्मान, भरोसे और बराबरी का प्रतीक माना जाता है. व्यापारिक समझौते हों, कूटनीतिक मुलाकात या फिर पहली पहचान, हाथ मिलाना एक वैश्विक संकेत बन चुका है.

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लेकिन यह परंपरा अचानक नहीं बनी, बल्कि इसके पीछे हजारों साल का सामाजिक और सांस्कृतिक विकास जुड़ा है. इतिहास बताता है कि इंसान ने हाथ तभी बढ़ाया, जब उसने सामने वाले पर भरोसा करना सीखा.

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हाथ मिलाने का अब तक का सबसे प्राचीन प्रमाण 9वीं सदी ईसा पूर्व का माना जाता है. असीरिया के राजा शलमनेसर तृतीय और बेबीलोन के शासक मर्दुक-जाकिर-शुमी प्रथम की एक पत्थर की नक्काशी में दोनों को हाथ मिलाते हुए दिखाया गया है.

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इतिहासकारों के अनुसार यह दृश्य राजनीतिक समझौते और शांतिपूर्ण संबंधों का प्रतीक था. यानी उस दौर में भी हैंडशेक शक्ति नहीं, सहमति का संकेत था.

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प्राचीन ग्रीस में हाथ मिलाने को डेक्सियोसिस कहा जाता था. यह समानता, मित्रता और आपसी सम्मान का प्रतीक था. ग्रीक मूर्तियों और साहित्य में, विशेषकर होमर के महाकाव्यों में, योद्धाओं, सहयोगियों और देवताओं के बीच हाथ मिलाने का उल्लेख मिलता है.

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यहां हैंडशेक यह दिखाने का तरीका था कि दोनों पक्ष एक-दूसरे को बराबर मानते हैं. मध्यकाल में हाथ मिलाने का अंदाज कुछ अलग था. लोग अक्सर जोर से हाथ मिलाते थे, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सामने वाले ने आस्तीन में कोई हथियार छिपा नहीं है.

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उस समय हैंडशेक शांति का मौन समझौता था, जिसमें बिना बोले यह भरोसा जताया जाता था कि मुलाकात हिंसा में नहीं बदलेगी. हैंडशेक के प्रचलन से पहले दुनिया भर में अभिवादन के कई तरीके थे. भारत में हाथ जोड़कर नमस्कार करना सम्मान और विनम्रता का प्रतीक रहा है.

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एशियाई संस्कृतियों में सिर झुकाना और झुककर अभिवादन करना आम था. परिवार और करीबी मित्र गले मिलकर मिलते थे, जबकि दूर से हाथ हिलाना औपचारिक अभिवादन माना जाता था. कई संस्कृतियों में सिर्फ नजरें मिलाना या हल्की मुस्कान भी सम्मान जताने के लिए पर्याप्त थी.

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