Diwali 2025: राम जी के अयोध्या आने पर तो नहीं फोड़े गए थे पटाखे, फिर क्यों होती है आतिशबाजी? क्या है पटाखों का इतिहास
जब भगवान राम 14 साल के वनवास से लौटे थे, तो अयोध्या वासियों ने पटाखों से नहीं बल्कि तेल के दीयों की कतारें जलाकर उनका स्वागत किया था.
रामायण के सदियों बाद पटाखों का प्रचलन शुरू हुआ और दिवाली के उत्सव को और भी बेहतर बनाने के लिए यह इस त्योहार के साथ जुड़ गया.
पटाखे अब जश्न का एक प्रतीक बन चुके हैं. यें अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक हैं. कई समुदायों में ऐसा मानना है कि पटाखों की तेज आवाज बुरी आत्माओं को दूर भागती है.
पटाखों का इस्तेमाल उत्सव की भावना को बढ़ाने, उत्साह बढ़ाने और दिवाली के दौरान परिवारों को एक साथ लाने के लिए किया जाता है.
पटाखों का आविष्कार सबसे पहले प्राचीन चीन में लगभग 800 ईस्वी में किया गया था. शुरुआत में पटाखे बारूद से भरे बांस के डंठल होते थे जिन्हें जलने पर तेज विस्फोट होता था.
भारत में मुगल काल के दौरान पटाखों का आगमन हुआ और शाही समारोहों में इनका इस्तेमाल किया जाने लगा. बड़े पैमाने पर पटाखों का उत्पादन 19वीं शताब्दी में शुरू हुआ और आज तमिलनाडु का शिवकाशी भारत ने पटाखा उत्पादन का सबसे बड़ा केंद्र है.