पहाड़ों पर तो हमेशा चलती है ठंडी हवा, वहां क्यों नहीं जारी होती शीत लहर की चेतावनी?
सर्दियों का नाम आते ही उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में शीत लहर की चर्चा शुरू हो जाती है. मौसम विभाग लगातार अलर्ट जारी करता है, शहरों में ठंड से बचाव के इंतजाम होते हैं और स्कूलों के समय में बदलाव तक किया जाता है.
वहीं दूसरी तरफ, उत्तराखंड, हिमाचल या कश्मीर जैसे पहाड़ी राज्यों में जहां तापमान कई बार -10 डिग्री तक पहुंच जाता है, वहां शायद ही कभी शीत लहर की चेतावनी सुनने को मिलती है. इससे यह सवाल उठता है कि जब पहाड़ों में इतनी ठंड है, तो वहां शीत लहर क्यों घोषित नहीं होती? इसका जवाब विज्ञान में छिपा है.
पहली बात यह समझनी होगी कि पहाड़ों में ठंड सामान्य स्थिति है. यानी वहां तापमान हमेशा ही मैदानी इलाकों की तुलना में कई गुना कम रहता है. ऊंचाई बढ़ने पर वायुमंडलीय दबाव कम होने के कारण हवा फैलती है और स्वाभाविक रूप से ठंडी हो जाती है.
इसी वजह से पहाड़ों की हवा सर्दियों में नहीं बल्कि सालभर ठंडी महसूस होती है. मौसम वैज्ञानिकों की भाषा में इसे प्राकृतिक तापमान वितरण कहा जाता है. दूसरी ओर, मैदानी इलाकों में यह स्थिति सामान्य नहीं होती है. दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और यूपी जैसे राज्यों में जब न्यूनतम तापमान अचानक 10 डिग्री से नीचे गिर जाता है और सामान्य स्तर से 4-6 डिग्री कम हो जाता है, तो यह ‘असामान्य गिरावट’ मानी जाती है.
यही असामान्यता शीत लहर की चेतावनी जारी कराने का आधार बनती है. शीत लहर की आधिकारिक परिभाषा के अनुसार, जब मैदानों में न्यूनतम तापमान 10°C से नीचे चला जाए या सामान्य से 4-6°C कम हो, तब इसे खतरनाक माना जाता है. इससे लोगों में हाइपोथर्मिया का जोखिम बढ़ता है, बीमारी तेजी से पकड़ती है और मौत तक का खतरा हो सकता है.
पहाड़ों में हालांकि तापमान अक्सर शून्य से नीचे जाता है, लेकिन वहां के लोग, पर्यावरण और रोजमर्रा की जीवनशैली उसी के अनुसार ढली हुई है, इसलिए वहां इसे ‘अलर्ट’ के रूप में नहीं गिना जाता है.
एक और बड़ा कारण है, भूमि की गर्मी का प्रभाव. पृथ्वी की सतह सूर्य की गर्मी को अवशोषित करती है. पहाड़ों पर ऊंचाई बढ़ने से आप इस गर्म सतह से दूर हो जाते हैं, इसलिए वहां का तापमान अपनी प्राकृतिक स्थिति में रहता है, जबकि मैदानी क्षेत्रों में सतह से मिलने वाली गर्मी अचानक कम हो जाए तो मौसम विभाग तुरंत सतर्क हो जाता है.