फीस नहीं भर पाए तो स्कूल ने नहीं दिया था रिजल्ट, फिर 50 लाख की नौकरी ने खोली एक्टर की किस्मत
सानंद वर्मा ने हाल ही में द फिल्मी चर्चा से बातचीत के दौरान अपने स्ट्रगल के दिनों को याद किया. उन्होंने कहा- ' मैंने ने तो बचपन से बहुत दुख दर्द गरीबी झेली है और बहुत सारी चुनौतियों का सामना करना पड़ा है. उन चुनौतियों से मैंने सीखा है तो मुझको ऐसा लगता है कि मैं बहुत भाग्यशाली हूं कि मैंने चुनौतियों से सीखा और गुमराह नहीं हुआ.'
एक्टर ने आगे कहा- 'जिन हालात से मैं गुजरा था, हो सकता है मेरी जगह कोई दूसरा बच्चा होता तो क्रिमिनल बन जाता. कोई गलत रास्ते पर चला जाता. तो मैं वैसा नहीं बना, मैंने लगातार अच्छी-अच्छी बातों को अपने अंदर लिया. अच्छी-अच्छी बातों को ऑब्जर्व किया और सीखा-समझा क्योंकि हमारे यहां गरीबी बहुत थी.'
सानंद ने इस दौरान बताया कि कैसे फीस ना जमा करने के चलते स्कूल ने उनका और उनकी बहन का रिजल्ट रोक लिया था. उन्होंने कहा- 'हम स्कूल-कॉलेज अफोर्ड कर नहीं सकते थे. मेरे पिताजी महान कवि थे पर पैसा कमाने की कला उनके पास नहीं थी. गुर्बत की वजह से मुझे आज भी याद है कि स्कूल में मेरी बहन और मुझे रिजल्ट नहीं दिया गया था क्योंकि फीस नहीं भर पाए थे मेरे मम्मी पापा.'
एक्टर कहते हैं- 'इतना दुख दर्द झेलने के बाद ना आदमी मजबूत हो जाता है. फिर वो मजबूती जो है वो काम आती है लगातार अपने आप को तराशने में. लगातार तराशता गया मैं खुद को और तराशता गया और लगातार सीखता गया. सीखते-सीखते एक अच्छे मुकाम पर भगवान ने मुझे पहुंचाया.'
सानंद ने आगे बताया कि वे बहुत छोटी उम्र से काम कर रहे हैं. उन्होंने कहा- 'मैं स्कूल-कॉलेज में एक तरह से नहीं गया हूं. लगातार 8 साल की उम्र से काम कर रहा हूं मैं. 8 साल की उम्र से अपने घर वालों को पैसे दे रहा हूं घर चलाने के लिए.'
'भाभीजी घर पर हैं' एक्टर कहते हैं- 'भगवान ने मुझे इतनी कामयाबी दी कि मैं एक टाइम पर बड़े कॉर्पोरेट सेक्टर में 50 लाख की नौकरी कर रहा था. सिनेमा का बहुत गहरा असर हुआ है मुझ पर और अच्छी बात ये है कि मैंने हमेशा हीरो से सीखा है, विलेन से नहीं से नहीं सीखा. हमेशा हीरो से सीखा है और मैं खुद को भी हीरो ही समझता हूं. मैं हीरोइ्म में विश्वास रखता हूं.'
सानंद वर्मा ने कई टीवी शोज में काम किया है. इनमें 'भाभीजी घर पर हैं' के साथ-साथ 'लापतागंज' और 'गुपचुप' शामिल हैं.